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पावा-पड़रौना अनुशीलन : १२३
१९७५ में श्री सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' ने पड़रौना आगमन पर इस कलात्मक प्रतिमा की प्रशंसा सुनकर इसका निरीक्षण किया और इससे प्रभावित होकर इसका चित्र भी लिया था । इस भव्य मूर्ति के चित्र के आधार पर शैलेन्द्र कुमार रस्तोगी ने अपना मत प्रकट किया है कि "यह जैन प्रतिमा निश्चित रूप से ही १०वीं शताब्दी के पूर्व की है । २४ तीर्थंकरों में यह किस तीर्थंकर की प्रतिमा है, इसके विषय में ये कोई निश्चित विचार व्यक्त नहीं कर पाते हैं । प्रतिमा में छत्र के निकट बाह्य-यन्त्र का अंकित होना वास्तव में उल्लेखनीय है । प्रतिमा के पृष्ठभाग का अध्ययन आवश्यक है, इस पर कुछ लेखांकन हुआ है ।""
मनाथ की उक्त प्रतिमा की भुजा का खण्डित भाग गोस्वामी तुलसीदास विद्यालय, पड़रौना में रखा है, जिसका रजिस्ट्रेशन अभी तक नहीं हो पाया है । नेमिनाथ की विशाल कलात्मक प्रतिमा पड़रौना की अमूल्य निधि है, गौरवशाली अतीत की स्मृति है । इसकी स्थिति दिन-प्रतिदिन दयनीय हो रही है । २० वर्ष के अन्तराल में खण्डित होकर विकृत हो यी है । भारतीय तथा प्रान्तीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग से इस प्राचीन अद्भुत प्रतिमा का जीर्णोद्धार कर वास्तविक स्वरूप प्रदान कर इसे सुरक्षित रखने के लिए विगत कई वर्षों से निरन्तर अनुरोध करता आ रहा हूँ । मुझे भय है कि यदि इसकी उचित व्यवस्था नहीं हुई तो यह कलाकृति नष्ट हो जायेगी तथा पड़रौना की गौरवशाली स्मृति समय के प्रवाह में बह जायेगी ।
इस मूर्ति के निकट पाकड़ वृक्ष की जड़ों में अब भी कई मूर्तियाँ फँसी हुई हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वृक्ष फैलता गया, मूर्तियाँ वहीं दबी रह गयीं, जिसको निकालना कठिन कार्य है, इसके नीचे अनेक बिखरी हुई खण्डित मूर्तियाँ मिली हैं जिसे गोस्वामी तुलसीदास उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, पड़रौना, देवरिया के संरक्षण में रखवा दिया गया है, जिसका विवरण निम्नलिखित है
समिति बुलेटिन, जुलाई १९८४, पृ० ३, श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन धर्मशाला, मेरठ, १९८४
१. ५-२-१९८६ के पत्र के आधार पर ।
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