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१२२ : महावीर निर्वाणभूमि पावा एक विमर्श
क्रमशः छोटे होते चले गये हैं, पार्श्व में ( इन्द्र ) और उपेन्द्र अंकित हैं, जो चार सज्जित हैं ।
इस मूर्ति का बुकनन के रेखाचित्र से तुलनात्मक अध्ययन किया गया तो ज्ञात हुआ कि बुकनन ने मूर्ति का सूक्ष्मता से चित्रांकन किया है तथा इसकी चित्रकारिता के साथ पूर्णतया न्याय किया है। उनकी चित्रकला में एक कमी अवश्य दृष्टिगोचर हुई कि मूर्ति के वक्ष पर अंकित चिह्न को उन्होंने अनदेखा कर दिया था ।
मनाथ की मूर्ति के हट्टीमाई, नामकरण के सम्बन्ध में गैरिक' का अभिमत है कि सम्भवतः मूर्ति के इस नामकरण के समय मन्दिर में नारी की कोई मूर्ति अवश्य स्थापित रही होगी । उक्त नारी की मूर्ति या तो नष्ट हो गई होगी अथवा वहाँ से हटा दी गई होगी। इस मूर्ति के विषय में फ्यूरर का अनुमान है कि वह श्रीगणेश की माता पार्वती की मूर्ति रही होगी । आरम्भ से ही हट्टीमाई का नाम चला आ रहा है । लोकोक्ति के आधार पर बुकनन तथा कनिंघम की यात्राकाल से इसे हट्टीमाई सम्बो-धित किया जाता है ।
इस भव्य मूर्ति के विषय में राय देवेन्द्र प्रसाद का मत है कि यह मूर्ति मनाथ की प्रतीत होती है, महावीर की नहीं। क्योंकि उक्त मूर्ति पर शासन देवी की गोद में बच्चा अंकित है । अतः उक्त देवी नेमिनाथ की शासन देवी हैं। उन्होंने स्वीकार किया है कि खण्डित प्रतिमा को उन्हीं लोगों ने जोड़कर वहाँ रक्खा है । सीमेण्ट से जोड़ने के कारण इसके वास्तविक स्वरूप में विकृति आ गई है । ४
१. कनिंघम, ए०, आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑव इण्डिया रिपोट्र्स इन नार्थं एण्ड साउथ बिहार, खण्ड १६, पृ० ११९
२. फ्यूरर, ए० - मानुमेण्टल एण्टीक्विटीज एण्ड इंस्क्रिप्शन्स इन नार्थ वेस्टर्न प्राविन्सेज, पू० २२४९
३. उल्लेखनीय है कि वाराणसी में भी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से रेलवे स्टेशन जाने वाले मार्ग पर मुड़कट्टा बाबा की एक मूर्ति है, यह वास्तव में कोई जैन मूर्ति है जो अब मुड़ कट्टा बाबा के नाम से पूजित है । इस प्रकार मूर्तियों के नये नामकरण से पूजने की यह कोई अकेली घटना नहीं है । विचारणीय बात यह है कि पड़रौना की यह मूर्ति और मुड़कट्टा बाबा की मूर्ति दोनों ही जैन प्रतिमाएँ हैं ।
४. 'सठियांव ही भगवान् महावीर की निर्वाण भूमि है', सं० दिगम्बर जैन महा
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