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पावा-पड़रौना अनुशीलन : १२१ वी०वी० वेडकर' के विचार से कनिंघम द्वारा प्राप्त की गई मूर्तियों के विषय में चौंकाने वाले तथ्य प्रकाश में आते हैं । उन्होंने लिखा है :
“It will be a shocking information to the historians of the world that the first superintendent of Indian Archaeology A, Cunningham, in the course of his official work of survey, made a very large and valuable collection of sculptures, coins and other objects of antiquarian interest, which alongwith his books, notes, papers and photo-negatives shipped to England through P & D Liner "Indus” which was unfortunately wrecked in the sea off the coast of Ceylon and thus this valuable collection is lost for ever in the sea.”
यह जानकारी वेडकर को प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता डॉ० डी० आर० पाटिल के व्यक्तिगत नोट्स में प्राप्त हई, जिसे डॉ० पाटिल ने उक्त संस्थान को दे दिया था। उनके नोट्स से यह ज्ञात होता है कि एलेक्जेण्डर कनिंघम की मृत्यु के पश्चात् ब्रिटिश पुरातात्त्विक पत्रिका में इस विषय में लेख प्रकाशित हुआ था।
अतः यह निष्कर्ष सुगमता से निकाला जा सकता है कि कनिंघम द्वारा यहाँ से प्राप्त की गई मूर्तियों और कलाकृतियों को जिसे अन्य महत्त्वपूर्ण सामग्रियों के साथ वे पी० एण्ड डी० लाइनर "इण्डस" नामक जलयान से ब्रिटेन भेजने की व्यवस्था किये थे, वह सिलोन के तट के पास दुर्घटना‘ग्रस्त होकर समुद्र में डूब गया ।
१९७२ में हमने नेमिनाथ की इस मूर्ति को देखा तो पाया कि अब भी लोग उसकी सिन्दूर आदि लगाकर हदी भवानी के रूप में पूजा करते हैं, नेमिनाथ की यह अद्भुत मूर्ति काले पत्थर की बनी है (फलक २, चित्र १)। कुछ विद्वान् इसे पाल-युगीन तो कुछ विद्वान् एवं इतिहासकार इसे पाँचवीं सदी की बताते हैं। योगमुद्रा में स्थित यह मूर्ति एक मीटर लम्बी साठ सेण्टीमीटर चौड़ी है। इस मूर्ति के वक्ष पर श्रीवत्स अंकित है एवं मूर्ति के नीचे पादपीठ पर दोनों पार्श्व में दो सिंह निर्मित हैं और उन दोनों के मध्य में चक्र है। इस मूर्ति के ऊपर तीन छत्र बने हुए हैं, जो
१. सं० वेडकर वि० वि०, एलेक्जेण्डर कनिंघम, ए०, हिस्ट्री एण्ड रिलिजन,
खण्ड ५ अंक ३, ठाणे, बम्बई १९८५ २. वेडकर, वी० वी०-एलेक्जेण्डर कनिंघम, हिस्ट्री एण्ड रिलीजन, पृ० १
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