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१२० : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श
एक मुसलमान सैनिक को इतना उत्तेजित कर दिया कि उसने अपनी तलवार निकालकर मूर्ति के चेहरे को ही विकृत कर दिया था ।
१८६१ में कनिंघम' को वहाँ प्रथम एवं तृतीय मूर्तियाँ दृष्टिगोचर नहीं हुईं, केवल द्वितीय बुकनन द्वारा निर्दिष्ट बुद्ध की मूर्ति दृष्टिगोचर हुई । सूक्ष्मता से निरीक्षण करने पर उन्हें इस मूर्ति में जैन मूर्ति होने के लक्षण दिखाई पड़े। जिस चबूतरे पर यह मूर्ति रखी हुई थी, उस पर अन्य कई प्राचीन मूर्तियों के साथ मिट्टी निर्मित हाथी की मूर्तियाँ रखी हुई थीं ।
इन मूर्तियों के अतिरिक्त बुद्ध की बैठी हुई प्रतिमाएँ भी उन्हें दृष्टिगोचर हुई थीं । उन्हें एक नारी की प्रतिमा मिली थी, जिसका ऊपरी भाग खण्डित था । वहाँ प्राप्त इन खण्डित मूर्तियों को देखने से उन्हें लगा कि ये किसी विशाल मूर्ति का अंग रही हैं। इसके अतिरिक्त वहाँ उन्हें कोई उल्लेखनीय मूर्ति तो नहीं दिखलाई दी। कुछ महत्त्वपूर्ण मूर्ति खण्ड अवश्य प्राप्त हुए तथा एक मूर्ति का पादपीठ दृष्टिगोचर हुआ, जिसे बुकनन ने अनदेखा कर दिया था । यहाँ से प्राप्त मूर्तियों को वे साथ ले गये थे । मेरी तो यह धारणा आरम्भ से ही रही है कि सर एलेक्जेण्डर कनिंघम ने यहाँ से प्राप्त मूर्तियों और कलाकृतियों को ले जाकर भारतीय संग्रहालय, कलकत्ता
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अवश्य रखवा दिया होगा, लेकिन हमारे पास निदेशक, भारतीय संग्रहालय, कलकत्ताका २१ मई १९८६ का निम्नलिखित पत्र प्राप्त हुआ :
"With reference to the letter addressed to the Governor, West Bengal, dated 6.2.1986 and your letter addressed to the Director, Indian Museum, dated 6.4.86 this is to inform you that a thorough search has been made among the existing registers (records preserved in the Museum) and it is found that in the collection of Indian Museum, there are some backed clay medals and ornamental bricks of different sizes found from Kasia but none of these is reported to have been deposited by Sir Alexander Cunningham."
इससे यह ज्ञात होता है कि एलेक्जेण्डर कनिंघम द्वारा तत्कालीन गोरखपुर जनपद से प्राप्त की गई मूर्तियाँ एवं कला कृतियाँ वहाँ पर नहीं हुई हैं।
१. कनिंघम, ए०, आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इण्डिया रिपोर्ट, खण्ड १, पृ० ६१-६२
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