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११२ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श अनुमान लगाना कठिन ही नहीं, असम्भव है। डॉ० राजबली पाण्डेय के अनुसार लखनऊ के नवाब वजीर और ईस्ट इण्डिया कम्पनी के मध्य. समझौता १० नवम्बर १८०१ में हुआ था । ऋण चुकाने में असमर्थ नवाब वजीर ने सम्पूर्ण गोरखपुर, बस्ती, बुटवल तथा आजमगढ़ जनपद का उत्तरी भाग ईस्ट इण्डिया कम्पनी को दे दिया। इससे यही ज्ञात होता है कि १७९४ में नवाब वजीर के तत्कालीन तहसीलदार शेखा ऊतुल्लाह पड़रौना में रहा करते थे।
बुकनन के उत्खनन-रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि तत्कालीन थानेदार से कहकर कुछ श्रमिकों को उन्होंने टीले के केन्द्र में उत्खनन के लिए लगाया, लेकिन ५ घन फुट उत्खनन के पश्चात् एक संकीर्ण पथरीले गलियारे में कुछ मानव अस्थियाँ दृष्टिगोचर होने के कारण उत्खनन कार्य स्थगित हो गया। उक्त परिस्थिति में इस टीले का उत्खनन पूर्ण नहीं हो सका। इनकी धारणा थी कि इस टीले के अन्दर कोई मन्दिर या स्तूप होना चाहिये। ___ सन् १८६१ में कनिंघम को इस टीले का उत्खनन करवाते समय विभिन्न मूर्तियाँ एवं कलाकृतियाँ प्राप्त हुई। उन्हें ज्ञात हुआ था कि ८ वर्ष पूर्व लगभग १८५३ ई० में एक स्थानीय जमींदार ने दो भवनों के निर्माण करवाने योग्य ईंटें निकलवाई थीं। इस कारण उक्त टीले से निकाली गई ईंटों एवं कनिंघम के आगमन के पूर्व तथा इसकी मूल प्रारम्भिक ऊँचाई ज्ञात करना कठिन है। कनिंघम के सर्वेक्षण के समय इस टीले की लम्बाई (पूर्व से पश्चिम) २२०' तथा चौड़ाई ( उत्तर से दक्षिण) १२०' एवं ऊँचाई १४ थी। इस तथ्य की पुष्टि गैरिक तथा गोरखपुर गजेटियर से होती है।
हमने २८ मई १९८३ को उक्त टीले की माप करायी जिसमें निम्नलिखित तथ्य पाये गये१. डॉ० पाण्डेय, राजबली, गोरखपुर जनपद और उसकी क्षत्रिय जातियों का
इतिहास, पृ० २५८-२५९ २. माण्टगोमरी मार्टिन एम० आर०-हिस्ट्री एण्टीक्विटीज़ टोपोग्राफी, एण्ड स्टैटि
स्टिक्स आव ईस्टर्न इण्डिया, जिल्द २, पृ० ३५४ ३. कनिंघम, ए०, आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इण्डिया रिपोर्ट खण्ड १,
पृ० ७४-७५ ४. नेविल, आर०, गोरखपुर गजेटियर खण्ड ३१, पृ० २७९-२८९
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