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पावा-पड़रौना अनुशोलन : १११ पुरातात्त्विक सर्वेक्षण किसी स्थल के प्रामाणिक अनुसन्धान में पुरातात्त्विक एवं साहित्यिक साक्ष्य एक दूसरे के पूरक हैं। बल्कि यह कहा जा सकता है कि पुरा. तात्त्विक साक्ष्य साहित्यिक साक्ष्य से ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। पुरातात्त्विक साक्ष्य साहित्यिक विवरण पर प्रामाणिकता की मुहर लगा देते हैं। पुरातात्त्विक साक्ष्य के अन्तर्गत अभिलेख एवं भूगर्भ के उत्खनन से प्राप्त भग्नावशेष और अन्य सामग्रियाँ जैसे मूर्तियाँ, कलाकृतियाँ एवं पात्र, मुद्रायें आदि मुख्य हैं। साहित्यिक साक्ष्य पड़रौना को ही पावा प्रमाणित करते हैं। इस अध्याय में हम पड़रौना सम्बद्ध पुरातात्त्विक साक्ष्यों का 'विवेचन प्रस्तुत करेंगे
पड़रौना से दक्षिण इसके ही उपनगर छावनी के निकट देवरहा ग्राम, छावनी से कुबेर स्थान जाने वाली सड़क के दक्षिण में स्थित है। यहाँ स्थित एक प्राचीन टीला, पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा सुरक्षित है। इस टीले के समीपस्थ मार्ग की उत्तर दिशा में महावीर की काले प्रस्तर की विशाल कलात्मक प्रतिमा आज भी पाकड़ के वृक्ष के नीचे पड़ी हुई है। इस प्राचीन टीले एवं यहाँ से प्राप्त मूर्तियों का सूक्ष्मता से निरीक्षण पड़रौना को प्राचीन नगरी सिद्ध करने में सहायक होते हैं।
टीले सहित इस क्षेत्र का सर्वेक्षण सर्वप्रथम बुकनन' ने ( सन् १८५४) करवाया था। इस टीले की लम्बाई पूर्व-पश्चिम २२४ तथा चौड़ाई उत्तरदक्षिण १२८' है। उनके अनुसार अनुमानतः २० वर्ष पूर्व यहाँ के तत्कालीन तहसीलदार शेखा ऊतुल्लाह के आदेश से इस टीले से ईंटें निकलवाकर तहसील में मकान आदि बनवाये गये थे। ईंट निकलवाते समय कुछ मूर्तियाँ दृष्टिगोचर होने से अपशकुन मानकर ईंट निकलवाने का कार्य रोक दिया गया। वहाँ से प्राप्त कुछ मूर्तियों को भूमि के अन्दर दबा दिया गया था तथा शेष बाहर रह गयी थीं। बुकनन के आगमन के समय भी वहाँ तीन मूर्तियाँ विद्यमान थीं। एक मूर्ति टीले के समीप स्थित खाई के निकट तथा शेष दो मूर्तियाँ निकट के गाँव में थीं। इन मूर्तियों में से एक तीन छत्रधारी पुरुष मूर्ति हिन्दुओं में हट्ठी माँ के रूप में पूजित थी।
बुकनन के सर्वेक्षण के लगभग २० वर्ष पूर्व १७९४ में कितनी ईंटें निकाली गयीं तथा इसके पूर्व उस टीले को क्या ऊँचाई रही होगी, इसका १. माण्टगोमरोमार्टिन, एम० आर०-हिस्ट्रो एण्टोक्विटीज टोपोग्राफी एण्ड
स्टैटिस्टिक्स आव इस्टर्न इण्डिया, जिल्द २ पृ० ३५४ ।
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