SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • ११० : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श नदियों को पार किया था उसमें से दो को उस काल में ककुत्था तथा हिरण्यवती नाम से सम्बोधित किया जाता था। वर्तमान खुनुआ ही तत्कालीन हिरण्यवती है। इनके अतिरिक्त महापरिनिव्वाण सूत्र में वर्णित तीसरी नदी वर्तमान काल में दृष्टिगोचर नहीं होती है। आज भी पड़रौना के उपनगर छावनी के दक्षिण में पश्चिम से पूर्व की नीची जमीन की पेटी ( चँवर ) दिखाई देती है। यहाँ वर्षा का पानी भर जाता है तथा गर्मी के दिनों में भी लगा रहता है। सम्भवतः उस अज्ञात नदो की धारा पड़रौना के निकट होकर जाती थी। महापरिनिव्वाण से पूर्व पावा से कुशीनगर जाते समय मार्ग में बुद्ध को प्यास लगी और उन्होंने आनन्द को इसी नदी से जल लाने को कहा था। उस समय उस नदी से ५०० गाड़ियों का जत्था निकल चुका था जिससे नदी का जल गन्दा हो गया था। महात्मा बुद्ध के आग्रह के पश्चात् भी आनन्द आरम्भ में, गन्दे जल के कारण जल लाने नहीं गये बाद में जल स्वच्छ होने पर उन्होंने जल लाकर बुद्ध की प्यास बुझाई। ____महावीर एवं गण्डक के सम्बन्ध में आवश्यक चूर्णि से ज्ञात होता है कि निग्गण्ठ ज्ञातपुत्र 'ज्ञात' खण्डवन से प्रस्थान करके गण्डकी नदी को, स्थलमार्ग (पुल) से पारकर कर्मारों ( लोहारों) के ग्राम कर्मरा पहुंचे थे। जातक कथाओं से नदियों पर पूल का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है किन्तु छिछले पानी में बन्द ( बाँध) से पार करने का उल्लेख प्राप्त होता है। नदी में गहरे पानी को पार करने के लिए नाव (द्रोणि ) का उपयोग हुआ करता था। राजा बहुधा नावों के बेड़े के साथ यात्रा किया करते थे। 'दिव्यावदान' से ज्ञात होता है कि राजगृह से श्रावस्ती के राजमार्ग पर सम्राट अजातशत्रु ने नाव के पुल ( नौसंक्रमण) का निर्माण करवाया था। लिच्छवियों के देश में भी गंडक पर एक पुल था। इससे स्पष्ट है कि अजातशत्रु के शासनकाल में राजगह से श्रावस्ती राजमार्ग पर लिच्छवि गणतंत्र के निकट गंडक पर नाव का पुल निर्मित था, जिसका उपयोग महावीर तथा बुद्ध एवं उनके शिष्यों द्वारा हआ करता था। इतना निश्चित है कि पुल निर्माण के पूर्व वर्षाकाल में तीर्थंकर मुनि, भिक्षु, व्यापारीगण कम यात्रा किया करते थे, सम्भवतः जैन और बौद्ध भिक्षुओं के चातुर्मास की परम्परा इसी कारण आरम्भ हुई होगी। उपर्युक्त वर्णन से प्रमाणित होता है कि गंडक का इस क्षेत्र के इतिहास के " सृजन में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy