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पावा-पड़रौना अनुशीलन : १०९. नदी नाम से सम्बोधित किया जाता था। संयुत्तनिकाय के पढम-सम्वेज्ज सुत्त' में इसकी गणना पाँच ( गंगा, यमुना, अचिरावती, राप्ती, सरभू ( सरयू ) और महीमहानदियों में थी। सुत्तनिकाय के दुतिय-सम्वेज्जसुत्त, समुद्दसुत्त, अंगुत्तरनिकाय, विसुद्धिमग्ग तथा मिलिन्द पन्हो' में भी इसका उल्लेख है। उदान" में इन पाँचों नदियों को समुद्र की ओर बहते हुए दिखाया गया है। 'पपंच सूदनी' में अन्य महानदियों के समान इसे पूर्व को ओर बहते दिखाया गया है। ___ सुत्तनिपात के धनिक सुत्त में उल्लेख आता है कि एक बार भगवान बुद्ध मही नदी के किनारे एक खुली कुटी में रात्रि में ठहरे हुए थे। कुटी ऊपर से खुली हुई थी। आकाश में घनघोर वर्षाकालीन बादल छाये हुए थे। भगवान् ने आकाश की ओर देखकर कहा-देव, इच्छा हो तो खूब बरसो “वर्ष देव यथासुखं ।"
महापरिनिव्वाण सुत्त से ज्ञात होता है कि महापरिनिव्वाण के पूर्व बुद्ध भोग नगर से चलकर पावा आये थे। बुद्धकालीन भूगोल से स्पष्ट है कि भोगनगर वज्जिसंघ में स्थित था तथा वज्जिसंघ एवं मल्लराष्ट्र के मध्य मही ( गण्डक) नदी सीमा का कार्य करती थी। यदि पावा गण्डक के तट पर स्थित था, तो निश्चित ही बुद्ध ने भोगनगर से पावा आगमन के समय गण्डक पार किया होगा। वस्तुतः मल्लराष्ट्र श्रावस्ती एवं वैशाली के मध्य स्थित था। अतः बुद्ध को इन महानगरों के मध्य आवागमन हेतु मही (गण्डक ) नदी को अवश्य पार करना पड़ा होगा।
बुद्ध ने महापरिनिर्वाण पूर्व पावा से कुशीनगर जाते समय जिन तीन १. संयुक्त निकाय ( हि० ) भिक्षु काश्यप, जगदीश, द्वितीय भाग, पृ० ८२३ २. अंगुत्तर निकाय ( हिन्दी ) कौसल्यायन, भदन्त आनन्द, चतुर्थ खण्ड,
पृ० १०१ ३. विसुद्धिमग्ग ( हिन्दी ) सं० कोसाम्बी, धर्मानन्द, ११२४ ( पृ० ६ ),
भारतीय विद्याभवन, बम्बई, १९४० ४. मिलिन्दपन्हो ( हिन्दी ), पृ० ८७, वाराणसी १९७९ ५. उदान ( हिन्दी ) भिक्षु काश्यप, जगदीश, पृ० ७३, महाबोधि सभा,
सारनाथ, बुद्धाब्द २४८२ ६. पपंच सूदनी, डॉ० टाटिया, नथमल, खण्ड २, पृ० ५८६, नवनालन्दा
महाविहार, नालन्दा, पटना १९७५ ७. दीघनिकाय महापरिनिन्वाण सुत्त (हिन्दी), पृ० १३६
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