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________________ प्रस्तावना : ११ कलाकृतियाँ उपलब्ध हैं। वे इस क्षेत्र के उक्त व्यापक दृष्टिकोण को स्पष्ट करती हैं। भगवान् महावीर का निर्वाण पावा में हुआ। यह नगर मल्लगण की राजधानी थी। प्राचीन बौद्ध-जैन साहित्य तथा महाभारत आदि ग्रन्थों में पावा के महत्त्व का पता चलता है। मल्ल जन सूर्य वंश की इक्ष्वाकु शाखा के थे । पहले उन्होंने नृपतंत्र स्थापित किया, बाद में वे गणराज्य के रूप में प्रसिद्ध हुए। उनका विस्तृत राज्य दो भागों में विभक्त हुआ। प्रथम मुख्य भाग का केन्द्र पावा बना । उसके दक्षिण के क्षेत्र की राजधानी कुशावती हुई, जिसका परवर्ती नाम कुसीनारा (कुशीनगर ) हुआ। अपने समीपवर्ती गणराज्यों तथा कोसल महाजनपद के साथ मल्लों के संबंध अच्छे रहे । पूर्व में मगध का साम्राज्य गणराज्यों के प्रति ईर्ष्या रखता था और उनकी उन्नति में बाधक था। ईसा पूर्व चौथी शती में मगधनरेश महापद्मनंद ने मल्लों के दोनों गणराज्यों के स्वतंत्र शासन को समाप्त कर दिया। ___ मल्लों तथा वज्जियों के जनपदों के बीच की सीमा-रेखा सदानीरा ( गंडकी) थी। भौगोलिक स्थिति और अच्छी जलवाय के कारण पावा नगर का महत्त्व बढ़ा। बुद्ध तथा महावीर-दोनों उसके प्रति आकृष्ट थे। दोनों के प्रति मल्ल जनों का प्रभूत आदर था। उस समय पावा नगर धार्मिक तथा आर्थिक समद्धि का केन्द्र था। श्रावस्ती से वैशाली तक जाने वाला लंबा राजपथ पावा होकर जाता था। जैन साहित्य में पावा के हस्तिपाल नामक राजा को रज्जुकशाला का उल्लेख है। बौद्ध-ग्रन्थों में पावा के "कम्मार-पुत्त चुन्द" का नाम आया है। गौतम बुद्ध और उनके साथियों का चुन्द ने बड़ा सत्कार किया। जब बुद्ध पावा से कुसीनारा (कुशीनगर ) के मार्ग पर थे तब उहोंने ५०० बैलगाड़ियों का एक बड़ा समूह देखा, जो आलार कालाम के शिष्य के पीछे जा रहा था। बौद्ध ग्रन्थ "दीवनिकाय" में वैशाली से पावा होकर कुशीनगर की ओर जाते हुए गौतम बुद्ध की अन्तिम यात्रा का विस्तृत वर्णन है। यह मार्ग उस समय बहुत प्रसिद्ध था। बाबरि के शिष्यों तथा महाकश्यप आदि ने इस मार्ग से यात्राएँ की थीं। वैशाली छोड़ने के बाद साथियों सहित बुद्ध भण्डगाम, हत्थिगाम, जम्बुगाम होकर भोगनगर पहुंचे। वहाँ से पावा पहुँच कर उन्होंने वहाँ चन्द के यहाँ भोजन किया। भोजन के बाद ही उनको तबियत बिगड़ गयी और पेट में भयंकर पीड़ा हुई। वे पावा से कुशीनगर की आर चल पड़े जो पावा से दक्षिण-पश्चिम लगभग. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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