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________________ १२ : महावीर निर्वाण भूमि पावा : एक विमर्श अठारह किलोमीटर दूर था । कुशीनगर में मल्लों के शालवन में बुद्ध का निर्वाण हुआ। मल्लों ने बड़े समारोह के साथ बुद्ध का अन्तिम संस्कार सम्पन्न कर वहाँ स्मारक की स्थापना की। जैन-साहित्य में मल्ल राष्ट्र की बड़ी प्रशंसा मिलती है। भगवान् महावीर ने पावा में अपने उपदेश दिये। वहाँ उन्होंने कुछ समय बाद निर्वाण प्राप्त किया। इसकी पुष्टि जैन तथा बौद्ध-साहित्य से होती है। लिच्छवियों तथा अन्य जनों के साथ मल्लों के नौ प्रमुखों ने महावीर स्वामी का संस्कार भव्य रूप में किया और उनके स्मारक बनवाये । ____ यह उल्लेखनीय है कि महावीर स्वामी तथा गौतम बुद्ध दोनों ने मल्ल राष्ट्र को ही अपना निर्वाण क्षेत्र चुनकर उस जनपद को गौरवान्वित किया । इस क्षेत्र के प्रति उन्होंने जो भाव व्यक्त किये तथा उक्त तथ्य से दोनों मनीषियों का मल्ल राष्ट्र के प्रति अतिशय स्नेह व्यक्त होता है। ___मध्यकालीन प्रसिद्ध जैन लेखक जिनप्रभसूरि के ग्रन्थ “विविधतीर्थकल्प में अपापा पुरी का वर्णन मिलता है। उनके अनुसार अपापा का हो नाम बाद में पावापुरी हो गया । इस ग्रन्थ के भौगोलिक क्रम को देखते हुए पावापुरी का अभिज्ञान वर्तमान पड़रौना से करना समीचीन है। लुम्बिनी तथा वैशाली के मध्य मौर्य सम्राट अशोक द्वारा अनेक स्तंभ स्थापित किये गये। अशोक का उद्देश्य था कि अपने साम्राज्य के यात्रापथों में प्रमुख-स्थलों पर शिलालेख तथा स्तम्भलेख, बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु, स्थापित किये जायें। यद्यपि सरयूपार क्षेत्र के अनेक स्थलों पर लगाये गये अशोक के स्मारक अब प्राप्त नहीं हैं, पर इतना निश्चित रूप से ज्ञात हो सका है कि लुम्बिनी और राजगह का क्षेत्र उसे विशेष प्रिय था और इन दोनों के मध्य बाले बड़े राजमार्ग को प्रसिद्ध करने का उद्योग किया था। पडरौना में अनेक प्राचीन टीले अभी अवशिष्ट हैं। उनसे जो पुरातात्विक सामग्री उपलब्ध हुई है वह उस स्थल की प्राचीनता को घोतित करती है । प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता जनरल कनिंघम ने इस सामग्री तथा भौगोलिक विवरणों के आधार पर पावा की पहचान पडरौना से की थी। कनिंघम के बाद इस क्षेत्र में जो कार्य हुआ है उससे भी यह बात पुष्ट होती है। । श्री भगवती प्रसाद खेतान ने बड़े श्रम के साथ संबंधित सामग्री का संकलन तथा विवेचन किया है। उन्होंने पुरातात्विक सामग्री के साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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