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________________ १० : महावीर निर्वाण भूमि पावा एक विमर्श प्राचीन पावापुरी मानते हैं । परन्तु उसे प्राचीन नगरी मानने में कठिनाई यह है कि वहाँ प्राचीन पुरातत्वीय अवशेष नहीं मिले हैं। प्राचीन भौगोलिक प्रमाणों से भी इसकी पुष्टि नहीं होती । विद्वानों का दूसरा वर्ग प्राचीन पावापुरी की स्थिति उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में फालिजनगर तथा सठियांव नामक गावों के क्षेत्र को मानता है । उस क्षेत्र में आसमान - पुर और उसके समीप कुछ टीले हैं, जिनसे ठीकरों, सिक्कों, मूर्तियों आदि के रूप में पुरातत्त्व की सामग्री मिली है। इस मुद्रा पर उत्कीर्ण ब्राह्मी लेख से ज्ञात हुआ है कि सठियांव का प्राचीन नाम श्रेष्ठिग्राम था, न कि पावा । १९५२ में उत्तर प्रदेश के पुरातत्त्व अधिकारी के रूप में मेरे द्वारा सरयूपार क्षेत्र का विस्तृत सर्वेक्षण किया गया । उसमें बहराइच, गोंडा, बस्ती, गोरखपुर और देवरिया जिले के प्राचीन स्थलों का अध्ययन किया गया । बिहार में वैशाली, नालंदा, राजगृह तथा उनके समीपस्थ कई स्थलों को भी देखा गया । उन प्राचीन स्थलों तथा उनसे प्राप्त सामग्री का अध्ययन करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि भगवान् महावीर के निर्वाणस्थल पावानगर का अभिज्ञान उत्तर प्रदेश में देवरिया जिला के वर्तमान पडरौना से करना अधिक युक्तिसंगत है । पिछले कई वर्षों में इस विषय पर मेरे अनुसंधानों से उक्त विचार को पुष्टि हुई है । भारतीय इतिहास में प्राचीन सरयूपार क्षेत्र तथा पश्चिमी बिहार का विशेष स्थान है । उस भूभाग में कोसल, काशी तथा मगध - इन तीन प्रमुख राजतंत्रों के अलावा शाक्य, मल्ल, लिच्छिवि आदि गणराज्य थे । भगवान् बुद्ध और महावीर स्वामी का जन्म क्रमशः शाक्य और लिच्छिवि गणों में हुआ । इन गणराज्यों का अपना संविधान था, जिसके अन्तर्ग वे प्रशासकीय तथा सांस्कृतिक कार्य करते थे । धार्मिक-सामाजिक उत्थान में अनेक गणराज्यों का विशेष योगदान था । इस क्षेत्र का यह सौभाग्य था कि वहाँ वैदिक - पौराणिक धर्म की विविध शाखाओं एवं बौद्ध, जैन-धर्म तथा अनेक लोक धर्मों को साथ-साथ विकसित होने का अवसर शताब्दियों तक प्राप्त रहा इससे इस क्षेत्र की धार्मिक सहिष्णुता पर प्रकाश पड़ता है। एक-दूसरे के आचार-विचार के प्रति यहाँ के लोगों में आदर की भावना थी । स्वतंत्र चिंतन के प्रति आस्था होने के कारण वहाँ विविध विचारों के पल्लवन का अवसर मिला इसके संबंध में साहित्यिक तथा पुरालेखीय विवरणों के अलावा बहुसंख्यक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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