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१०६ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श
होता रहा है । अतः निश्चित ही रामायण काल से पूर्व गण्डक नदी हाटा तहसील की पूर्वी सीमा के पास बहा करती थी । यदि बुद्ध काल में गण्डक हाटा तहसील के पूर्वी छोर पर बहती तो कुशीनगर और पड़रौना के भग्नावशेष एवं कलाकृतियाँ उसके प्रवाह में कभी की विलीन हो गयी होतीं । निश्चित ही बुद्ध काल में गंडक पावा ( पड़रौना ) के समीप बहा करती थी । आधुनिक काल में गंडक की चौड़ाई ( पाट ) कहीं-कही लगभग ६ मील है, जिसके उत्तरी छोर पर बिहार का नगर बगहा तथा दक्षिण छोर पर उत्तर प्रदेश का जटहाँ बाजार स्थित है । डॉ कृपासिंह' गंडक नदी के प्रवाह और कटाव का गहन अध्ययन कर इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि गंडक नदी का जलग्रहण क्षेत्र ३७००७ किमी० है । गंडक के मार्ग परिवर्तन के विषय में इनकी धारणा है कि पहले गंडक हाटा तहसील की सीमा पर बहा करती थी, आज पड़रौना तहसील को पार करती हुई बिहार के गोपालगंज तहसील के पूर्वी छोर तक पहुँच गयी है । इसका प्रत्यक्ष प्रमाण बलुई भूमि के टीले ( धूस ) की श्रृंखला के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं । इस प्रकार अनेक ताल-तलैया, नदी-नालों का निर्माण हुआ है । वर्षा काल में इन नदी-नालों में छोटी गंडक, बाँसी इत्यादि नदियों का पानी भर जाता है और बाढ़ की स्थिति हो जाती है ।
गोरखपुर गजेटियर' से इस बात की पुष्टि होती है कि सम्पूर्ण पड़रौना तहसील तथा देवरिया और सलेमपुर के उत्तरी भाग की भूमि की बनावट भाँठ किस्म की है । भाँठ भूमि का निर्माण नारायणी, छोटी गंडक और उनकी सहायक नदियों द्वारा लाई हुई मिट्टी से हुआ है । भाँठ की मिट्टी सफेद होती है, जिसका एकमात्र कारण यही है कि इस मिट्टी में मिट्टी के अनुपात में चूना अधिक होता है, तथा जल ग्रहण करने की शक्ति अधिक होती है । ढूढ़ीवारी से देवरिया जनपद के भाटपार स्टेशन तक एक रेखा खींची जाये तो भाँठ की भूमि पूर्व की ओर अलग हो जायेगी । इस क्षेत्र के सर्वेक्षण से ज्ञात होता है कि बलुई भूमि के टीलों की शृंखला ( धूस ), महराजगंज तहसील ( गोरखपुर जनपद ) हरपुर से शुरू होकर देवरिया तक चली गई है, ऊँची भूमि की दूसरी श्रेणी उत्तर-पश्चिम से शुरू होकर पूर्व-दक्षिण की ओर फैली हुई
१. सिंह, कृपाशंकर, लैण्ड यूज एण्ड न्यट्रीशन पडरौना ( तहसील ) देवरिया ( अप्रकाशित ), पृ० १२७
२. गोरखपुर गजेटियर, पृ०
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