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पावा-पड़रौना अनुशीलन : १०७ दृष्टिगोचर होती है, जिसके निकट पपऊर, बड़हरागंज, पड़रौना, कुबेर स्थान इत्यादि उपनगर स्थित हैं। इनके समीपवर्ती भागों में कहीं नीचीऊँची, कहीं झील और कहीं-कहीं पर कंकडीली भूमि के शैल चट्टे पाये जाते हैं । इसके आधार पर कहा जा सकता है कि प्राचीन काल में गण्डक नदी यहीं से होकर बहा करती थी। . ___ नारायणी ( शालिग्रामी) की उत्पत्ति के सम्बन्ध में पद्मपुराण में वर्णन है कि पूर्वकाल में विष्णु ने प्रजा को अत्यन्त पापलिप्त देखकर इनके पाप-प्रक्षालन हेतु अपनी कनपटी के पसीने से पापध्वंसिनी नारायणी की सृष्टि की। अपनी उत्पत्ति पसीने से जानकर गण्डकी ने सहस्रों दिव्य वर्षों तक कठोर तपस्या किया। तपस्या से प्रसन्न विष्णु ने गण्डकी के उदर में शालिग्राम रूप से स्वयं स्थित होने का वर दिया। वरप्राप्ति के पश्चात् गण्डकी शालिग्रामी नाम से विख्यात हुई।
रामायण से ज्ञात होता है कि गण्डक (सदानीरा ) कोसलराज की सीमा निर्धारित करती थी। लाहा' ने भी कोसल के दक्षिण में गंगा नदी, उत्तर में हिमालय पर्वत, पूर्व में गण्डक नदी तथा विदेह, पश्चिम में कुरु पांचाल देश स्थित बताया है। इस प्रकार बड़ी गण्डक ( सदानीरा) विदेह और कोसल को विभाजित करती थी। __रामायण से सम्बद्ध जनश्रुतियों में भी गण्डक और उसकी उपधारा बासी का उल्लेख आया है। जनश्रुति के अनुसार महाराज दशरथ बारात लेकर जनकपुर जाते समय और वहाँ से वापस लौटते समय गण्डक के तट पर पड़ाव डाले थे। इसी उपलक्ष में गण्डक की उपधारा बाँसी के तट पर रामघाट में, जो पड़रौना से लगभग ५ मील उत्तर दिशा में है, प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को विशाल मेला लगता है। आज भी लोगों में यह दृढ़ मान्यता है कि बाँसी नदी का यह घाट श्रीराम की बारात के मार्ग का एक पड़ाव था। श्रीराम के पद-रमण के कारण यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही पवित्र है, ऐसा विश्वास है।
उल्लेखनीय है कि बुकनन के सर्वेक्षण काल (१८१४ ) में बाँसी १. लाहा, विमलचरण, ऐंशियेण्ट इण्डियन ट्राइब्स, पृ० ३४, पंजाब संस्कृत बुक
डिपो, लाहौर, १९२६ २. माण्टगोमरी मार्टिन, एम० आर०, दि हिस्ट्री, एण्टीक्विटीज टोपोग्राफी स्टै
टिस्टिक्स ईस्टर्न इण्डिया, खण्ड-२, पृ० १२५५, कासमो पब्लिकेशन, दरियागंज, दिल्ली, १९७६
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