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१०४ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श है कि १९१२ में गोरखपुर-सिवान लूप लाइन के निर्माण के समय पड़रौना के निकट पूर्व दिशा में सिंधवा के दक्षिणी कुण्ड से साख के लम्बे-लम्बे बल्ले, नाव के बड़े-बड़े टुकड़े तथा उसके पतवार मिले थे।
गण्डक और पड़रौना का सम्बन्ध स्पष्ट करने के लिए हम गण्डक के उद्गम स्थल, प्रवाह क्षेत्र आदि का विवेचन करने के साथ ही इस नदी के विषय में प्राप्त साहित्यिक विवरण पर विचार करेंगे
प्रागैतिहासिक काल में यह सदानीरा, नारायणी, शालीग्रामी, बाँड़ी, गंडकावती, गण्डक आदि नामों से विख्यात थी। बुद्धकाल में इसे मही नदी कहा जाता था। इसे शालीग्रामी भी कहा जाता था क्योंकि इसके धाराप्रवाह में असंख्य छोटे-छोटे शैल, परस्पर घिस जाने से सुन्दर शालिग्राम के रूप में मिलते हैं।
गण्डक नदी हिमालय से निकलकर, तराई ( नेपाल एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश ) में प्रवाहित होती हुई, उत्तर से सीधे दक्षिण की ओर बिहार प्रदेश के वैशाली जनपद स्थित, हाजीपुर एवं सोनपुर के मध्य गंगा में विलीन हो जाती है। इसे हरिहर क्षेत्र कहते हैं। हरिहर क्षेत्र का महत्त्व चिरकाल से है जहाँ प्रतिवर्ष बहुत विशाल मेला लगता है।
'गंगा फ्लड कंट्रोल कमीशन' की रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि गण्डक का उद्गम स्थान नेपाल सीमा के निकट तिब्बत में धवलागिरि के उत्तर में, २९° १८' उत्तरी अक्षांश तथा ८३° ५८' पूर्वी देशान्तर पर, ७६२० मी० ऊँचाई पर है। इसका जल प्लावन क्षेत्र ४६३०० वर्ग किमी० है, जिसमें ७६२० वर्ग किमी० क्षेत्र भारतवर्ष में, शेष नेपाल और तिब्बत में है। जो क्षेत्र भारतवर्ष में पड़ता है, उसमें ९६८ वर्ग कि० मो० उ० प्र० में, एवं ६६५२ वर्ग कि० मी० बिहार में है। जो क्षेत्र नेपाल और तिब्बत में है, उसका १/६ भाग हिमाच्छादित रहता है, जिसे पर्वतीय क्षेत्र में काली एवं कृष्णगंडक सम्बोधित किया जाता है। इसकी नेपाल तथा तिब्बत में वास्तविक लम्बाई ३८० किमी० है तथा भारतवर्ष में २६० किमी० है। यह एक विलक्षण नदी है, जो नेपाल के हिमाच्छादित पर्वतों की शृंखलाओं से निकलकर, पहाड़ियों से बहती हई ढलान पर ऐसे मोड़ से समतल मैदान पर उतरती है, जहाँ वह अधिक गहराई नहीं बना पाती है। यही कारण है कि इसके धारा प्रवाह, कटाव व वेग में अधिक तीव्रता है। वर्षाकाल में गण्डक नदी, जल की अधिकता से मैदानी क्षेत्र में आने १. मानीटरिंग रिपोर्ट, पृ० २-३, वाटर रिसोर्सेज किनिस्ट्री, इण्धिया गवर्नमेण्ड,
दिल्ली।
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