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पावा-पड़रौना अनुशीलन : १०३ कुशीनगर होकर गोरखपुर मार्ग है। पड़रौना से दक्षिण में देवरिया नगर स्थित है, जहाँ कुशीनगर से होकर मार्ग जाता है। गोरखपुर से राष्ट्रीय वायुसेवा उपलब्ध है।
पड़रौना तथा इसके समीपवर्ती क्षेत्र के भौगोलिक अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि यहाँ के सघन अरण्य इसकी प्राकृतिक सम्पदा, उर्वर भूमि तथा अनुकूल जलवायु, आरम्भ से ही महापुरुषों को आकर्षित एवं मोहित करती रही है, जिसका इतिहास साक्षी है। नगर तथा क्षेत्र की आर्थिक सम्पन्नता, कच्चे माल को उपलब्धि एवं खपत (बाजार), आवागमन के पर्याप्त साधन, सघन जनसंख्या एवं पक्के माल के उत्पादन के कारण ही पड़रौना एक प्रमुख औद्योगिक एवं व्यापारिक केन्द्र के रूप में विकसित हुआ है।
गण्डक-सम्बन्ध
बौद्ध सिंहली ग्रन्थों' ( दीपवंस और महावंस ) में स्पष्ट उल्लेख है कि पावा कुशीनगर से तीन गव्यूति ( १२ मील ) की दूरी पर गण्डक की दिशा में स्थित था। कुछ विद्वान् जिनमें कनिंघमरे सर्वप्रथम हैं, पावा को स्पष्टतः गण्डक पर स्थित मानते हैं। नन्दलाल डे भी इस पावा के गण्डक के किनारे स्थित होने की पुष्टि करते हैं। आधुनिक बाड़ी नदी इसी गण्डक की उपधारा है जिसके तट पर पड़रौना स्थित है।
पड़रौना नगर अर्द्धचन्द्राकार बसा हुआ है। पड़रौना के निकट गण्डक के प्रवाहित होने के पुरातात्विक साक्ष्य भी मिलते हैं । गोरखपुर गजेटियर के अनुसार पड़रौना के निकट एक पोखरे की खुदाई के समय सन् १९७८ में एक बड़ी नाव के टुकड़े का मिलना इस बात का प्रमाण है कि गण्डक नदी कभी इस छोर से बहा करी थी। ब्रह्मदेव शर्मा ने भी उल्लेख किया १. डॉ० पाण्डेय, राजबली, गोरखपुर जनपद और उसकी क्षत्रिय जातियों का
इतिहास, पृ० ७८ २. कनिंघम, ए०, एशियेण्ट ज्याग्रफी आव इण्डिया, पृ० ४९७ ३. डे०, एन० एल०, ज्याग्रफिकल डिक्शनरी, एशियेण्ट मेडिवल इण्डिया,
पृ० २५०, लुजाक एण्ड कंपनी, लंदन, १९२७ ४. नेविल, एच० आर०, गोरखपुर गजेटियर, खण्ड ३१, पृ० ४-५, गवर्नमेण्ट'
प्रिंटिंग प्रेस, इलाहाबाद । ५. शर्मा, ब्रह्मदेव, हमारे क्षेत्र के दो सिद्धपीठ, पृ० ५, अशोक प्रिंटिंग प्रेस,
पड़रौना, १९५४
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