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________________ ८६ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श भी उल्लेख नहीं है। योगेन्द्र मिश्र' का मत है कि सम्राट अजातशत्रु का झुकाव इस समय बौद्ध धर्म को ओर ही था। __जैन साहित्य में भी कुणिक सम्बन्धी संस्मरण कुछ अधिक रहा है. सम्भव है उनका सम्बन्ध जैन धर्म से अधिक रहा हो। बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद अजातशत्रु द्वारा उनके धातु अवशेषों की मांग के विषय में रीज डेविड का कथन है कि सम्राट ने अपने दूत द्वारा यह कहकर बुद्ध के धातु अवशेषों को प्राप्त किया कि वे भी उन्हीं की भाँति एक क्षत्रिय हैं। बुद्ध के धातू अवशेषों को प्राप्त कर उन्होंने उस पर स्तूप बनवाया । उत्तरवर्ती ग्रन्थों में यह उल्लेख है कि बद्ध-निर्वाण के तत्काल बाद ही जब राजगृह में प्रथम संगीति हुई, अजातशत्र ने सप्तवर्णी गुफा के द्वार पर एक सभा भवन बनवाया था जहाँ बौद्ध पिटकों का संकलन हुआ। सम्भवतः बौद्ध धर्म स्वीकार न करके भो उसने बौद्ध धर्म के प्रति बो सहानुभूति दिखाई वह भारतीय राजाओं की इस मान्यता के अनुरूप थी कि सब धर्मों का संरक्षण राजा का कर्तव्य होता है। योगेन्द्र मिश्र ने मगध सम्राट अजातशत्रु और पावा के राजा हस्तिपाल के एक होने की सम्भावना को स्पष्टतः इन्कार किया है। वास्तव में पावा को भौगोलिक स्थिति ऐमी होनी चाहिए जहाँ पर मल्ल, लिच्छवी एवं काशी-कोशल के गण-राजा महावीर निर्वाण की सूचना पाते ही पहुँच जायें। इन लिच्छवी गणराजाओं में क्षत्रिय कुण्डपुर के महावीर स्वामी के कुछ स्वकुलीन ज्ञातृक गण-राजा भी रहे होंगे। उस समय काशी-कोशल में कई छोटे-छोटे गण राज्य फूल-फल रहे थे। पावा स्वयं भी तो काशी-कोवाल क्षेत्र में ही थी। अतः भौगोलिक सामीप्यता, शासन पद्धति को समानता एवं भगवान महावीर की भक्ति के कारण काशी-कोवाल, वज्जि के अट्ठारह गण राजा तुरन्त आ गये । — जैन ग्रन्थों में पावा के विषय में विस्तार से विवेचन हुआ है। महावीर के निर्वाणोपरान्त, सिर्फ पावा का ही वर्णन आता है, लेकिन १. मित्र, योगेन्द्र-श्रमण भगवान् महावीर को वास्तविक निर्वाण भूमि पावा, राजबली पाण्डेय स्मृति ग्रन्थ, पृ० १९६, कलानिधि प्रकाशन, देवरिया । २. रीष डेविड, टी० डब्ल्यू-बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० १५-१६ । 1. मिश्र, योगेन्द्र-श्रमण भगवान् महावीर की वास्तविक निर्वाण भूमि पावा, पृ० १९६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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