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________________ पावा की अवस्थिति सम्बन्धी विभिन्न मत : ८५ ने लिखा है कि कल्पसूत्र के अनुसार जिस समय महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था उस समय मगध के शत्रुगण ने एक महोत्सव किया जो पन्द्रह वर्ष पूर्व वैशाली के युद्ध की किसी विजयपूर्ण घटना की स्मृति में मनाया मया था। जहाँ तक अठारह गणों की भौगोलिक स्थिति का प्रश्न है कल्पसूत्र में इन गणों को ( काशी कोशलस्थ ) काशी कोशल में स्थित बताया गया है अर्थात् ये गणराज्य मगध से अलग काशी एवं कोशल में स्थित थे। ___ जैन और बौद्ध साहित्य में कुणिक अजातशत्रु का बहुशः उल्लेख होने के कारण विद्वानों के मस्तिष्क में यह प्रश्न उठा कि वह जैन अनुयायी था या बौद्धानुयायी या दोनों धर्मों में से किस धर्म के प्रति अधिक अनुराग रखता था । टी० डब्ल्यू. रीज डेविड' का मत है कि यद्यपि बौद्ध त्रिपिटकों में सम्राट् अजातशत्रु सम्बन्धित वर्णन अधिक प्राप्त होता है फिर भी वे बौद्ध धर्म के हितैषी मात्र थे अनुयायो नहीं। अजातशत्रु द्वारा बुद्ध से मिलकर श्रामण्य फल पूछने का एक उल्लेख प्राप्त होता है। इस चर्चा के परिणाम के विषय में रोज डेविड ने लिखा है कि अन्त में सम्राट अजातशत्रु ने बुद्ध को अपना मार्ग दर्शक स्वीकार कर लिया और पितृ-हत्या के लिए पश्चात्ताप किया । फिर भी निश्चित प्रमाण के अभाव में कुणिक ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया या नहीं इस विषय में किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा जा सकता है। राधाकुमुद मुखर्जी ने भी श्रामण्यफल सूत्र के आधार पर इसी प्रकार का मत व्यक्त किया है कि अजातशत्र का झुकाव बौद्ध धर्म के प्रति था किन्तु इसे उन्होंने धारण नहीं किया था। रोज डेविड के अनुसार इस बात का भी कहीं उल्लेख नहीं मिलता है कि कुणिक द्वारा बुद्ध या उनके संघ के किसी भी भिक्षु का दर्शन किया गया या कभी उनके साथ धर्म-चर्चा की गई। यहाँ तक कि उसके द्वारा भिक्षु के जीवन काल में भिक्षु संघ को कभी आर्थिक सहायता देने का १. रीज डेविड, टी० डब्ल्यू.-बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० १५-१६ कलकत्ता, प्रथम सं० १९५० । २. मुखर्जी, राधाकुमुद–हिन्दू सिविलाइजेशन, पृ० १९१, भारतीय विद्यावभन बम्बई १९५० । ३. रोज डेविड, टी० डब्ल्यू०,-बुद्धिस्ट इण्डिया पृ०१५-१६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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