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८४ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श ___ मुनि नगराज ने भी परम्परा और ऐतिहासिकता के अन्तविरोध को स्वीकार किया है-परम्परा सम्मत पावा दक्षिण बिहार में है और वहां के भव्य मन्दिरों ने उसे जैनतीर्थ बना दिया है। साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया है कि ऐतिहासिक साक्ष्य से इस बात का परिज्ञान नहीं होता है कि पावा वहाँ है। महावीर के निर्वाण के अवसर पर पावा में मल्लों और लिच्छवियों के १८ गणराजाओं की उपस्थिति पावा के उत्तरी बिहार में स्थित होने की ओर संकेत करती है। दक्षिण बिहार की वर्तमान पावा तो निश्चय ही उनके शत्रु प्रदेश में थी। वे अपने कट्टर शत्रु मागधों के प्रदेश में कैसे उपस्थित हो सकते थे ? दूसरे यदि पावा मगध राज्य में स्थित होती तो, महावीर निर्वाण के समय जो उस काल की महान घटना थी, सम्राट कुणिक अजातशत्रु वहाँ अवश्य उपस्थित होते ।।
महावीर के निर्वाण के समय पावा में और बुद्ध के परिनिर्वाण के समय कुशीनगर में मगध सम्राट अजातशत्र की अनुपस्थिति के सम्बन्ध में डॉ. बाजपेयी ने लिखा है कि यह आश्चर्यजनक है किन्तु कुशीनगर में अजातशत्रु के उपस्थित होने में बाधा यह थी कि वह मल्लों की प्रसिद्धि एवं लोकप्रियता से ईर्ष्या करता था। विचारणीय यह है कि उसने मगध के निवासियों के अनुरोध पर अपना दूत बुद्ध के धातु अवशेषों को प्राप्त करने के लिए भेजा था।
डॉ० शैलनाथ चतुर्वेदी भी मगधसम्राट अजातशत्रु की उस पुनीत अवसर पर अनुपस्थिति पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं क्योंकि जैन स्रोतों के मनुसार वह महावीर के प्रति अत्यन्त श्रद्धावान था । यदि निर्वाण मगध के किसी स्थान पर हुआ होता तो अजातशत्रु वहाँ अवश्य पहुँचता । इस प्रकार हम देखते हैं कि कल्पसूत्र के अनुसार निर्वाण काल में केवल शत्रु राजा ही उपस्थित थे ऐसी स्थिति में मगध राज्य के किसी भी स्थान पर पावा की स्थिति असम्भव थी। अतः महावीर को निर्वाण-स्थली मगध में नहीं अपितु ऐसे प्रदेश में होनी चाहिए जहाँ पर मल्ल और लिच्छवी तो एकत्रित हो गये परन्तु अजातशत्रु अनुपस्थित रहा। ऐसा स्थल मल्ल अथवा लिच्छवी प्रदेश में ही सम्भव था अन्यत्र नहीं। हर्मन याकोबी
१. मुनि नगराज, भगवान महावीर एवं बुद्ध को समसामयिकता, पृ० १६१ २. डॉ० बाजपेयी, कृष्णचन्द्र-लोकेशन आव पावा, पृ० ५४ । ३. डॉ. चतुर्वेदी, शैलनाथ-प्राचीन पावा, पृ० ५-६, गोरखपुर १९७३ । ४. डॉ० याकोबी, हर्मन-से० बु० आव द ई०, खण्ड २२, पृ० २६६ ।
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