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________________ ८२ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श और बम्बई के धनवान श्रावकों ने इस तीर्थस्थलो के विस्तार में योगदान किया है। महत्त्व को दष्टि से पावापूरो के मन्दिरों में ग्राम मन्दिर के पश्चात् जलमन्दिर का क्रम आता है। इस मन्दिर के प्रादुर्भाव के विषय में श्रो विजयसिंह नाहर ने रोचक तथ्य प्रस्तुत किया है। महावीर का निर्वाण सुनकर दूर-दूर से देव एवं मानव आये तथा ग्राम मन्दिर से १ मोल दूर इसी स्थान पर उनके पार्थिव शरीर का बडो धूमधाम से अग्नि संस्कार किया गया। सभी आगन्तुक देव एवं मानव यहाँ को थोड़ो-थोड़ो मिट्टी ले गये, फलतः इतना बड़ा गड्ढा हो गया जिसने सरोवर का रूप ग्रहण कर लिया। __श्री नाहर ने जलमन्दिर एवं उसके निर्माण के विषय में भी महत्त्वपूर्ण जानकारी दी है। बकनन ने १८१२ के अपने सर्वेक्षण के आधार पर बताया है कि यह जैनमन्दिर पोखरे (झोल) में टापू सदृश था इसो कारण इन्होंने इसे पोखरपुरी की संज्ञा दी है । उस समय टापू पर जाने के लिए उत्तर दिशा से पगडण्डो थी । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान पुल बुकनन के सर्वेक्षण के बाद आज से लगभग १०० वर्ष पहले बना होगा इसके पहले जलमन्दिर तक नौका द्वारा जाना पड़ता था और सर्वेक्षण के बाद ही इस मन्दिर का जोर्णोद्धार भो किया गया ऐसा विद्वानों का मत है। पाश्चात्य विद्वान् जे० डी० बेंगलर ने सन् १८७२७३ में लिखा है कि वर्तमान रूप में यह मन्दिर उसको यात्रा के काल के थोड़ा ही पहले बना होगा। वहाँ पहुँचने का रास्ता मिट्टो भरकर बनाया गया था। उसने जब पहले देखा था तब वह काम पूरा नहीं हुआ था। मुनि नगराज ने भी स्वीकार किया है कि प्राचीन जलमन्दिर का १. नाहर, विजयसिंह-पावापुरी दिग्दर्शन, भगवान् महावीर निर्वाण महोत्सव स्मारिका १० २७-२८ २. मान्टगोमरी मार्टिन, एम० आर०-'हि० ए० टो० स्टै० इ० इ०' खण्ड-१, पृ० १६८-६९ ३. आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इंडिया रिपोर्ट, ८, पृ० ७७, १८७२-७३ ४. मुनि नगराज, निर्वाण एवं परिकल्पना, भगवान् महावोर निर्वाण महोत्सव स्मारिका, पृ० ७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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