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पावा को अवस्थिति सम्बन्धी विभिन्न मत : ८१ इस अभिलेख से पावापुरी ग्राममन्दिर के जीर्णोद्धार के विषय में ज्ञान होता है। इस अभिलेख को बिहार निवासी खरतरगच्छीय महान्तियाण संघ ने शाहजहाँ के शासनकाल (१६२७-१६५८) में वेदी के नीचे स्थापित करवाया था। इस अभिलेख में २१ पंक्तियाँ हैं। विजयसिंह नाहर' के अनुसार इस विशाल प्रशस्ति शिलालेख को पुरातत्त्वविद् पूर्णचन्द नाहर ने वेदी से निकालकर ग्राम मन्दिर की दीवाल में स्थापित करवाया था। अभिलेख की दूसरी पंक्ति एवं तीसरी पंक्ति में तिथि तथा पातिशाह साहिजाँह की चर्चा है। अभिलेख की दूसरी पंक्ति में प्रथम बार इस बात का उल्लेख मिलता है कि पावापूरी चौबीसवें जिनाधिराज श्री वर्धमान स्वामी के निर्वाण-कल्याणक से पवित्र है। उपरोक्त तथ्यों की डी० आर० पाटिल, गुलाबचन्द्र चौधरी एवं योगेन्द्र मिश्र ने भी पुष्टि की है। __ डी० आर० पाटिल' का मत है कि वर्तमान ग्राम मन्दिर की अपेक्षा यह अभिलेख अधिक प्राचीन है। सम्भवतः प्राचीन ग्राम मन्दिर के नष्ट हो जाने पर इसे आधनिक ग्राम मन्दिर में स्थापित किया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि मुस्लिम काल में आवागमन की असुविधा एवं गंगा के उत्तरी क्षेत्र से जैनमतानुयायियों का सम्बन्ध न होने के कारण १६४९ ई० में नालन्दा जनपद की यह पावापुरी महावीर की निर्वाणभूमि पावा के रूप में मान्यता प्राप्त होकर पूज्य हो गयी। ग्राम मन्दिर से सम्बद्ध ७ अन्य लेख क्रमशः संवत् १५११ माघ सुदी सोमवार, १७७२, १९१०, १९२३, १९२९, १९३२, १९५३ और १९५८ के हैं। प्रतीत होता है कि मुर्शिदाबाद, कलकत्ता, बिहार शरीफ (पटना-जिला ) पाटन, येवला
१. नाहर, विजयसिंह-'पावापुरी दिग्दर्शन' महावीर निर्वाण महोत्सव
स्मारिका, पृ० ८७, नालन्दा, बिहार १९७४ २. पाटिल, डी० आर०–एन्टीक्वेरियन रिमेन्सेज इन बिहार, पृ० ४२२ पटना,
१९६३ ३. डॉ० चौधरी, गुलाबचन्द्र-भगवान महावीर की निर्वाण भूमि पावा-प्राचीन
पावा, पृ० ४१, गोरखपुर १९७३ ४. डॉ. मिश्र, योगेन्द्र-श्रमण भगवान महावीर की वास्तविक निर्वाण भूमि
पावा, प्राचीन पावा, पृ० १७, ४५, गोरखपुर १९७३ ५. पाटिल, डी० आर-एन्टीक्वेरियन रिमेन्सेज इन बिहार, पृ० ४२२, पटना
१९६३
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