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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन पैरों से बनाया । मुख से शास्त्रों का अध्यापन कराते हुए भरत ब्राह्मण वर्ण की रचना करेगा । १२ __एक तरफ समाज में श्रौतस्मार्त प्रभाव स्वयं बढ़ता जा रहा था दूसरे उस पर जैनधर्म की छाप लग जाने से और भी दृढ़ता आ गयी । जिनसेन के करीब एक शती बाद सोमदेव हुए। वे जैनधर्म के मर्मज्ञ विद्वान होने के साथ-साथ प्रसिद्ध सामाजिक नेता भी थे। उनके सामने यह समस्या थी कि जैनधर्म के मौलिक सिद्धान्त, सामाजिक वातावरण तथा जिनसेन द्वारा प्रतिपादित मन्तव्यों का जैन चिन्तन के साथ कोई मेल नहीं बैठता। किन्तु जन-मानस में बैठे हुए सस्कारों को बदलना और एक प्राचीन प्राचार्य का विरोध करना सरल काम नहीं था। सोमदेव जैसे जन-नेता के लिए वह अभीष्ट भी न था। ऐसी परिस्थिति में उन्होंने यह चिन्तन दिया कि गृहस्थों के दो धर्म मान लिए जाएँ-एक लौकिक और दूसरा पारलौकिक । लौकिक धर्म के लिए वेद और स्मृति को प्रमाण मान लिया जाये और पारलौकिक धर्म के लिए आगमों को। ___ सोमदेव के ये मन्तव्य ऊपर से देखने पर जैन-चिन्तन के बिलकुल विपरीत लगते हैं, क्योंकि एक तो वेद और स्मृतियों की विचारधारा जैन-चिन्तन के साथ मेल नहीं खाती। दूसरे जैनागमों में गृहस्थधर्म और मुनिधर्म, ये दो भेद तो आते हैं,१३ किन्तु गृहस्थों के लौकिक और पारलौकिक दो धर्मों का वर्णन यशस्तिलक के अतिरिक्त अन्यत्र नहीं हुआ । अनायास ही यह प्रश्न उठता है कि क्या सोमदेव जैसा निर्भीक शास्त्रवेत्ता लौकिक और वैदिक प्रवाह में बहकर जैनधर्म के साथ इतना बड़ा अन्याय कर सकता है ? यशस्तिलक के अन्तःपरिशीलन से ज्ञात होता है कि सोमदेव ने जो चिन्तन दिया, उसका शाश्वत मूल्य है तथा जैन-चिन्तन के साथ उसका किञ्चित भी विरोध नहीं पाता। सोमदेव ने यशस्तिलक में अनेक वैदिक मान्यताओं का विस्तार के साथ .. खंडन किया है, १४ इसलिए यह कहना नितान्त असङ्गत होगा कि वे वेद और स्मृति को प्रमाण मानते थे । १२. तुलना-महापुराण, पर्व १६, श्लोक ३४३.३४६ ऋग्वेद, पुरुषसूक्त १०,६०, १२ महाभारत, अध्याय २६६, श्लोक ५.६, पूना १९३२ ई० मनुस्मृति, अध्याय १, श्लोक ३३, बनारस १६३५ ई. १३. चारित्रप्राभूत, गाथा २० १४. यशस्तिलक उत्तरार्ध, अध्याय ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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