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________________ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन इसी प्रसङ्ग में 'भाल' शब्द का उल्लेख है। श्रुतसागर ने उसका अर्थ चाण्डाल किया है।४६ चाण्डाल अछूत माना जाता था और समाज में उसका अत्यन्त निम्न स्थान था। सोमदेव ने चाण्डाल का स्पर्श हो जाने पर मन्त्र जपने का उल्लेख किया है । ४७ १६. शवर (२८१, उत्त०६०) शवर एक जंगली जाति थी। इसे भी अस्पृश्य माना जाता था।४८ शवर की स्त्री को शवरी कहते थे। शवर परिवार गरीब होते थे । ठंड आदि से बचने के लिए उनके पास पर्याप्त वस्त्र आदि नहीं होते थे। सोमदेव ने लिखा है कि ठंड में प्रातःकाल शिशु को निश्चेष्ट देखकर शवरी उसे पिलाने के लिए हाथ में फलों का रस लिए उसे मरा हुआ समझकर रोती है। ४९ २०. किरात (२२० उत्त०) किरात भी एक जंगली जाति थी। इसका मुख्य पेशा शिकार था । यशस्तिलक में सम्राट यशोधर जब शिकार के लिए गये तब उनके साथ अनेक किरात शिकार के विविध उपकरण लेकर साथ में जाते हैं।५० २१. वनेचर (५६) वनेचर शब्द से ही यह स्पष्ट है कि यह जंगली जाति थी। किरातार्जुनीय में वनेचर का उल्लेख आया है।५१ २२. मातंग (३२७ उत्त०) यह भी एक जंगली जाति थी। यशस्तिलक से ज्ञात होता है कि विन्ध्याटवी में मातङ्गों की बस्तियाँ थीं। इनमें मद्य-मांस का प्रयोग बहुत था । अकेला आदमी मिल जाने पर ये उसे भी मद्य-मांस पिला-खिला देते थे।५२ ४६. प्रकृतिशुचिर्भालमध्येऽपि । भालमध्येऽपि चाण्डालमध्येऽपि ।-५०४५७ सं०टी० ४७. चाण्डालशवरादिमिः, आप्लुत्य दण्डवत् सम्यग्जपेन्मंत्रमुपोषितः ।। -पृ० २८१, उत्त. ४८. वही ४९. प्रातर्डिंम्भविचेष्टितुण्डकलनानीहारकालागमे, हस्तन्यस्तफलद्रवा च शवरी वाष्पातुरं रोदिति ।-०६० ५०. अनणुकोषोत्करिणतपाणिभिः किरातैः परिवृतः ।-पृ० २२० ११. सः वणिलिंगिः विदितः समाययो, युधिष्ठिरं द्वैतवने वनेचरः ।-११ १२. विन्ध्वाटवी विषये "मातङ्गरूपवध्य.. उक्तः।-पृ०३२७ उत्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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