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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन १६. चर्मकार (१२५) : चमार या चमड़े का व्यापार करनेवाला । चर्मकार के साथ उसके एक उपकरण दृति का भी उल्लेख है ।३८ दृति का अर्थ श्रुतसागर ने चर्मप्रसेविका किया है।३९ दृति का अर्थ प्रायः पानी भरने वाला चमड़े का थैला या मसक किया जाता है।४० लगता है दृति कच्चे चमड़े को पकाने के लिए थैला बनाकर तथा उसमें पानी और अन्य पकाने वाली सामग्री भरकर टाँगे गये चमड़े को कहते थे । इसमें से पानी टपटप गिरता रहता है । देहातों में चमड़ा पकाने की यही प्रक्रिया है। सोमदेव के उल्लेख से भी लगभग इसी स्वरूप का बोध होता है।४१ मनुस्मृति तथा याज्ञवल्क्य स्मृति के उल्लेखों से भी इसका समर्थन होता है।४२ १७. नट या शैलूष (२२८ उत्त०, २६१) इसका मुख्य पेशा तरह-तरह के चित्ताकर्षक वेष धारण करके लोगों को खेल दिखाकर आजीविका चलाना था ।४३ नटों के पेशे का एक पद्य में सम्पूर्ण चित्र खींचा गया है। नट के खेल में जोर-जोर से बाजा बजाया जाता था (प्रानकनिनदनदत् रम्यः)। स्त्रियाँ गीत गाती थीं (गीतकान्तः)। नट आभूषण पहने होता था, खासकर गले का हार (हाराभिरामः) और जोर-जोर से नर्तन करता था (प्रोत्तालानर्तनीतिर्नट, २२८ उत्त०)। १८. चाण्डाल (२५४, २५७) एक उपमा में चाण्डाल का उल्लेख है। सफेद केश को चाण्डाल के दण्ड (डंडे) की उपमा दी गयी है। ४४ एक स्थान पर कहा गया है कि वर्णाश्रम, जाति, कुल आदि की व्यवस्था तो व्यवहार से होती है, वास्तव में राजा के लिए जैसा विप्र वैसा चाण्डाल । ५ ३८. चर्मकारतिद्युतिम् । -पृ० १२५ ३६. दृतिश्चर्मप्रसेविका । वहीं, सं० टी० ४०. आप्टे--संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी ४१. यो कृशोऽभूत्पुरा मध्यो वलित्रयविराजितः । सोऽद्य द्रवद्रसो धत्ते चर्मकारदृतिद्युतिम् ॥-पृ. १२५ ४२. इन्द्रियाणां तु सर्वेषां यद्यकं क्षरतोन्द्रियम् । तेनास्य क्षति प्रज्ञा दृतेपादादिवेदकम् ॥-मनुस्मृति, २१९९, याज्ञवल्क्य ३।२६ ४३. शैलूषयोषिदिव संसृतिरेनमेषा, नाना विडम्बयति चित्रकरैः प्रपंचैः। प्रपंचैर्नानावेषैः । -पृ. २६, सं० टी. ४४. चाण्डालदण्ड इव । -पृ० २५४ । ४५. वर्णाश्रमजातिकुलरिथतिरेष। देव संवृते न्या। परमार्थतश्च नृपतेः को विप्रः कश्च चाण्डालः ॥-पृ. ४५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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