SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२ अन्य सामाजिक व्यक्ति सामाजिक कार्य करने वाले अन्य व्यक्तियों में निम्नलिखित उल्लेख आये हैं१. हलायुधजीवि ( ५६ ) : हल चलाकर आजीविका करनेवाले । २. गोप ( ३९१ ) : कृषि करने वाले । 1 गोप की पत्नी गोपी या गोपिका कहलाती थी । पत्नी पति के कृषि कार्य में भी हाथ बटाती थी । सोमदेव ने धान के खेतों में जाती हुई गोपिकाओं का उल्लेख किया है ( शालिवप्रेषु यान्त्यः गोपिका, १६ ) । गोप और हलायुधजीवि में सम्भवतया यह अन्तर था कि गोप वे कहलाते थे, जिनकी अपनी निजी खेती होती थी तथा हलायुधजीवि उनको कहते थे, जो अपने हल ले जाकर दूसरों के खेत जोतकर अपनी आजीविका चलाते थे । यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन ३. ब्रजपाल ( ५६ ) : गायें पालनेवाले । ४. गोपाल ( ३४० उत्त० ) : ग्वाला | ग्वालों की बस्ती को गोष्ठ कहते थे । २२ सम्भवतया व्रजपाल उन्हें कहते थे, जिनके पास गायों तथा अन्य पशुओं का पूरा व्रज ( बड़ा भारी समुदाय ) होता था तथा गोपाल वे कहलाते थे, जो अपने तथा दूसरों के पशु चराते थे । ५. गोध ( १३१ उत्त० ) : गड़रिया | I बकरियाँ तथा भेड़ पालनेवाले को गोध कहते थे इ ६. तक्षक ( २७१ ) : कारीगर या राजमिस्त्री | २४ ७. मालाकार (३९३ ) : माली । मालाकार या माली की कला का सोमदेव एक सुन्दर चित्र खींचा है । मन्त्री राजा से कहता है कि राजन्, मालाकार की तरह कंटकितों को बाहर रोककर या लगाकर, घनों को विरले करके, उखाड़े गये को पुनः रोपकर, पुष्पित हुए से फूल चुनकर, छोटों को बड़ाकर, ऊँचों को झुकाकर, स्थूलों को कृश करके तथा अत्यन्त उच्छृंखल या ऊबड़-खाबड़ को गिराकर पृथ्वी का पालन करें । ५ २२. गोष्ठीनमनुसृतः । -- पृ० ३४० उत्त० २३. तं गोधमेवमभ्यधात् । -- पृ० १३१ उत्त० २४. कार्य किमत्र सदनादिषु तक्षकायैः । - पृ० २७१ २५. वृक्षाम्कण्टकिनो बहिर्नियमयन् विश्लेषयन्संहितानुस्खातप्रतिरोपयन् कुसुमितां श्चल्लघून्वर्धयन् उच्चान्संनमय-पृथं इच कृशयन्नत्युच्छ्रितान्पातथन् मालाकार इव प्रयोगनिपुणो राजन्महीं पालय || – १०३६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy