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________________ ६० यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन चतुर्वर्ण ब्राह्मण -- यशस्तिलक में ब्राह्मण के लिए ब्राह्मण (११६-११८, १२६ उत्त० ), द्विज ( ९०, १०५, १०८, १०४ उत्त०, ४५७ पू० ), विप्र ( ४५७ पू० ), भूदेव ( ८= उत्त०), श्रोत्रिय ( १०३ उत्त० ), वाडव ( १३५ उत्त० ), उपाध्याय ( १३१ उत्त०), मौहूर्तिक (३१६ पू०१४० उत्त०), देवभोगी, ( १४० उत्त० ० ) तथा पुरोहित (३१६ पू० ३४५ उत्त० ) शब्द प्राये हैं । एक स्थान पर (२१०) त्रिवेदी ब्राह्मरण का भी उल्लेख है । । : उन दिनों समाज में ब्राह्मणों की खूब प्रतिष्ठा थी । राजा भी इस बात में गौरव अनुभव करता था कि ब्राह्मणों में उसकी मान्यता है । ३ पितृतर्पण आदि सामाजिक क्रिया-काण्डों में भी ब्राह्मण ही आगे रहता था । ४ श्राद्ध के लिए ब्राह्मणों को घर बुलाकर भोजन कराया जाता था । विशिष्ट ब्राह्मणों को दान देने की प्रथा थी ६ श्राद्ध तथा मृत्यु के बाद की अन्य क्रियाएँ करानेवाले ब्राह्मणों के लिए भूदेव शब्द प्राया है । ७ सम्भवतः श्रोत्रिय ब्राह्मण प्रचार की दृष्टि से सबसे श्रेष्ठ माने जाते थे, किन्तु उनमें भी मादक द्रव्यों का उपयोग होने लगा था । बलि आदि कार्य के विषय में पूरी जानकारी रखने वाले, वेदों के जानकार ब्राह्मणों को वाडव कहते थे । ९ दशकुमारचरित में भी ब्राह्मण के लिए वाडव शब्द का प्रयोग हुआ है । १० अध्यापन कार्य कराने वाले ब्राह्मण उपाध्याय कहलाते थे ।' शुभ मुहूर्त का शोधन करने वाले ब्राह्मण मौहूर्तिक कहे जाते थे । १२ मुहूर्त शोधन का कार्य करते समय वे उत्तरीय से अपना मुँह ३. त्रिवेदीवेदिभिर्मान्यः । पृ० २१० ४. पितृसन्तर्पणार्थं द्विजसमा जसरसवतीकाराय समर्पयामास । - १०२१८ उत्त० ५. भुक्ता च श्राद्धामन्त्रितै भू देवैः । -- पृ० ८८ ६. ददाति दानं द्विजपुंगवेभ्यः । - ४५७ ७. श्राद्धा मन्त्रितैः भूदेवैः : - पृ० ८८ पृ०, कार्यान्तामनयोर्भूदेव संदोह साक्षिणी.. क्रिया: । पृ० १९२ उत्त० । ८. अशुचिनि मदनद्रव्यैनिपात्यते श्रोत्रियो यद्वत |-- पृ० १०३ उत्त० ९. वेदविद्भिर्वाडवैः । -- पृ० १३५ उत्त० १०. वाडवाय प्रचुरतरं धनं दत्वा । -- दशकुमार०१५ ११. अध्यापयन्नुपाध्यायः । पृ० १३१ उत्त १२. राज्याभिषेक दिवसगणनाय मौहूर्तिकान् । पृ० १४० उत्त० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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