SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यशोधरचरित्र की लोकप्रियता तत्पादपावनपयोधरमत्तभृगः, श्रीमल्लिभूषणगुरुर्गरिमाप्रधानः । सप्रेरितोऽहममुनाभयरुच्यभिख्ये भट्टारकेण चरिते श्रुतसागराख्यः ॥६ इनका समय १६वीं शती माना जाता है । २०. हेमकुंजर ने ३७० श्लोकों में संस्कृत में यशोधरकथा लिखी । २१. जन्न कवि ने सन् १२०९ में गद्य और पद्य में चार अवतारों (अध्यायों) में कन्नड़ में यशोधरचरित्र लिखा । २२. पूर्णदेव ने संस्कृत में यशोधरचरित्र लिखा। इसके रचनाकाल का पता नहीं चलता। सं० १८४४ की एक पाण्डुलिपि अामेर शास्त्र-भण्डार में सुरक्षित है। २३. श्री विजयकीर्ति ने संस्कृत गद्य में यशोधरचरित्र लिखा। इसके रचनाकाल या लिपिकाल का पता नहीं चलता। २४. ज्ञानकीर्ति ने संवत् १६५९ में संस्कृत यशोधरचरित्र लिखा। इसकी प्राचीनतम प्रति संवत् १६६१ की उपलब्ध है। यह आमेर शास्त्र-भंडार में सुरक्षित है।' २५-२८. बड़ा मंदिर, जयपुर के शास्त्र-भंडार में संस्कृत यशोधरचरित्र को चार ऐसी भी पाण्डुलिपियाँ हैं, जिनके लेखक का पता नहीं चलता। इनमें . रचनाकाल भी नहीं है। एक का लिपिकाल संवत् १७१५ तथा एक का १८०१ दिया है । चारों की शास्त्र संख्या इस प्रकार हैं। (१) वेष्टन संख्या १४४६ ( संवत् १८०१ की प्रति ) (२) वेष्टन संख्या १४४८ (३) वेष्टन संख्या १४४९ (४) वेष्टन संख्या १४५० ( संवत् १७५० की प्रति ) ६. राजस्थान के शान-भण्डारों की सूची, भाग २, पृ. २८८ ७. आमेर शास्त्र-भण्डार सूची, पृ० ११७ ८. वही ६. वही, पृ० ११६ १०. वही, पृ० २२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy