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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
११. माणिक्यसूरि ने संस्कृत के अनुष्टुप् पद्यों में १४ अध्यायों में यशोवर चरित्र की रचना की । इनके समय आदि के विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती । माणिक्यसूरि ने हरिभद्र को अपने पूर्ववर्ती रूप में स्मरण किया है ।
१२. पद्मनाभ ने नो अध्यायों में संस्कृत यशोधरचरित्र लिखा । इसकी प्राचीनतम प्रति संवत् १५३८ की मिलती है, जो आमेर ( राजस्थान ) के शास्त्रभंडार में सुरक्षित है । इनके समय इत्यादि का ठीक पता नहीं चलता ।
१३. पूर्णभद्र ने संस्कृत के ३११ पद्यों में संक्षेप में यशोवरचरित्र लिखा । इनके सम्बन्ध में भी कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती ।
१४. क्षमाकल्याण ने संस्कृत गद्य में यशोधरचरित्र लिखा, जो कि आठ अध्यायों में समाप्त होता है । क्षमाकल्याण ने अपने यशोधरचरित्र के प्रारम्भ में हरिभद्र के प्राकृत यशोधरचरित्र का उल्लेख किया है । 1 अपनी कृति सं० १८३९ ( १७८२ ई० ) में पूर्ण की थी ।
क्षमाकल्यारण ने
१५. भण्डारकर इंस्टीट्यूट में एक और पाण्डुलिपि यशोधरचरित्र की है, जिसके प्रारम्भ के कुछ पृष्ठ नहीं हैं और इसलिए उसके लेखक का भी पता नहीं चलता । ग्रन्थ ४ अध्यायों में तमाप्त होता है । यह पाण्डुलिपि सन् १५२४ ई० की है ।
५.२
रायबहादुर हीरालाल की ग्रन्थ- सूचि के अनुसार यशोधरचरित्र पर निम्न लिखित विद्वानों ने भी ग्रन्थ लिखे
१६. मल्लिभूषण नं० ७७८८
१७. ब्रह्ममिदत्त नं० ७८००
१८. पद्मनाथ नं० ७८०५ । सम्भवतया उपरि- उल्लिखित पद्मनाभ और पद्मनाथ एक ही हैं ।
१९. श्रुतसागर ने चार अध्यायों में संस्कृत में यशोधरचरित्र लिखा । ये श्रुतसागर यशस्तिलक के टोकाकार ही हैं । संत्र की प्रार्थना पर इन्होंने अपने ग्रन्थ की रचना की थी । ग्रन्थ के अन्त में प्रशस्ति इस प्रकार दी गयी थी
... श्रीमत्कुंदकुंदविदुषो देवेन्द्र कीर्तिर्गुरुः । पट्टे तस्य मुमुक्षुरक्षणगुणो विद्यादिनंदीश्वरः ॥
५. श्री हरिभद्रमुनी द्रविहितं प्राकृतमयं तथान्यकृतम् तदहम् गद्यमयं तत् कुर्वे सर्वावबोधकृते ॥
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