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________________ यशोधरचरित्र की लोकप्रियता ३. हरिभद्र के बाद दशवीं शती में सोमदेव ने संस्कृत में विशालकाय यशस्तिलक लिखा। ४. सोमदेव के समकालीन विद्वान् पुष्पदन्त ने अपभ्रंश में जसहरचरिउ की रचना की। ५. पुष्पदन्त और सोमदेव के बाद वादिराजकृत यशोधरचरित्र की जानकारी मिलती है। श्रतसागर ने वादिराज को सोमदेव का शिष्य बताया है।३ स्वयं वादिराज की सूचना के अनुसार उन्होंने यशोधरचरित्र की रचना के पूर्व शक संवत् ९४७ (१०२५ ई०) में पार्श्वनाथचरित की रचना की थी।४ ६. वादिराज के बाद वासवसेन का उल्लेख किया जाना चाहिए। वासवसेन ने संस्कृत में पाठ अध्यायों में यशोधरचरित्र लिखा। ७. वासवसेन के समकालीन वत्सराज ने भी यशोधर-कथा पर ग्रन्थ लिखा । गन्धर्व कवि ने वासवसेन तथा वत्सराज दोनों का उल्लेख किया है। इसलिए इनका समय १४ वीं शती से पूर्व का अनुमाना जाता है। ८. वासवसेन ने अपने पूर्ववर्ती प्रभंजन और हरिषेण का उल्लेख किया है। हरिषेण के काव्य के विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती। संस्कृत कथाकोष के रचयिता हरिषेण से इनकी पहचान की जाती है किन्तु पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में निश्चित रूप से यह नहीं माना जा सकता कि वासवसेन के द्वारा उल्लिखित हरिषेण यही हैं। ९. वासवसेन की शैली और विवा पर ही सम्भवतया सकलकीर्ति ने अपना संस्कृत यशोधरचरित्र लिखा। सकलकीर्ति के शिष्य ज्ञानभूषण ने संवत् १५६० में अपनी तत्त्वज्ञानतरंगिणी की रचना की थी। इसी आधार पर सकलकीर्ति का समय १४५० ई० के लगभग अनुमाना जाता है। १०. सकलकोर्ति की ही शैली और विधा पर सोमकीर्ति ने संस्कृत में यशोधरचरित्र की रचना की। स्वयं सोमकीर्ति ने इसका रचनाकाल संवत् १५३६ (१४७९ ई०) दिया है। ३. स वादिराजोऽपि सोमदेवाचार्यस्य शिष्यः। वादीमसिंहोऽपि मदीय शिष्यः श्री वादिराजोऽपि मदीय शिष्यः । इत्युक्तत्वाच्च ।-यश० २।१२६ सं० टी. ४. श्री पा श्वनाथका कुत्स्थचरितं येन कीर्तितम् । तेन श्रीवादिराजेनारब्धा याशोधरी कथा ॥ -पी. एल. वैद्य-वही, पृ० २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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