SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपनी कृति के विषय में स्वयं कुछ कहना उचित नहीं लगता। यदि मनीषी विद्वान् यह अनुभव करेंगे कि प्रस्तुत प्रबन्ध आधुनिक साहित्यिक अनुसंधान की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है और इसके माध्यम से यशस्तिलक की महनीय सामग्री का भविष्य के शोध-प्रबन्धों, इतिहास-ग्रन्थों तथा शब्द-कोशों में उपयोग किया जा सकेगा, तो मैं अपने प्रयत्न को सार्थक समझंगा। इस प्रबन्ध में मैंने उन्हीं विषयों को लिया है, जो प्रो० हन्दिकी के ग्रन्थ में नहीं आ पाये । इस दृष्टि से यह प्रबन्ध तथा प्रो. हन्दिकी का ग्रन्थ दोनों मिलकर यशस्तिलक के साहित्यिक, दार्शनिक तथा सांस्कृतिक अध्ययन को पूर्णता देंगे। एक शोध-प्रबन्ध सोमदेव के राजनीतिक विचारों पर प्रो० पुष्यमित्र जैन ने आगरा विश्वविद्यालय को प्रस्तुत किया है। इस में विशेष रूप से सोमदेव के द्वितीय ग्रन्थ नीतिवाक्यामृत का अध्ययन किया गया है। यशस्तिलक की भी राजनीतिक सामग्री का उपयोग किया गया है। सोमदेव के समग्र अध्ययन को दिशा में यह एक पूरक इकाई का काम करेगा। __ इन अध्ययन ग्रन्थों के बाद भी यह कहना उचित नहीं होगा कि सोमदेव का पूर्ण अध्ययन हो चुका । मैं तो इसे श्रीगणेश मात्र कहता हूँ । वास्तव में विभिन्न दृष्टिकोणों से सोमदेव की सामग्री का पृथक्-पृथक् अध्ययन-विवेचन आवश्यक है। ___ सोमदेव के समग्र अध्ययन के लिए इस समय जो सर्वप्रथम महत्त्वपूर्ण कार्य अपेक्षित है, वह है सोमदेव के दोनों उपलब्ध ग्रन्थों के प्रामाणिक संस्करण तैयार करने का। ऐसे संस्करण जिनमें इन ग्रन्थों से सम्बन्धित सम्पूर्ण प्रकाशित और अप्रकाशित सामग्री का उपयोग किया गया हो। अपने अनुसंधान काल में मुझे निरन्तर इस की तीव्र अनुभूति होती रही है। अभी तक दोनों ग्रन्थों के जो पूर्ण संस्करण निकले हैं, वे अशुद्धि-पुंज तो है ही, अनेक दृष्टियों से अपूर्ण और अवैज्ञानिक भी हैं । इस के अतिरिक्त उन को प्रकाशित हुये भी इतना समय बीत गया कि बाजार में एक भी प्रति उपलब्ध नहीं होती। ___यशस्तिलक का एक ऐसा संस्करण में स्वयं तैयार कर रहा हूँ, जिसमें श्रीदेवके प्राचीन टिप्पण, श्रुतसागर की संस्कृत टीका तथा आधुनिक अनुसंधानों का तो पूर्ण उपयोग किया हो जायेगा, हिन्दी अनुवाद और सांस्कृतिक भाष्य भी साथ में रहेगा। नीतिवाक्यामृत के संपादन का कार्य पटना के श्री श्रीधर वासुदेव सोहानी ने करने की रुचि दिखायो है । आशा है वे इसे अवश्य करेंगे। यदि किन्हीं कारणों वश न कर पाये, तो यशस्तिलक के बाद इसे भी मैं पूरा करने का प्रयत्न करूँगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy