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यशस्तिलक की कथावस्तु और उसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
उसी समय राजधानी के निकट सुदत्त नाम के महात्मा प्राकर ठहरे । उनके साथ उनके दो अल्प वयस्क शिष्य भी थे। ये दोनों भाई-बहिन अल्प अवस्था में ही राज्य त्याग कर साधु हो गये थे। साधु वेश में उनका राजसी तेज और कमनीयता अक्षुण्ण थी। मध्याह्न में वे दोनों अपने गुरु की आज्ञा लेकर नगर में भिक्षा के लिए गये। वहां उनकी राज्य कर्मचारियों से भेंट हो गयी। राज्य कर्मचारी बिना किसी रहस्य का उद्घाटन किये ही बहाना बना कर उन दोनों को चण्डमारी के मन्दिर में ले गये। ___ मारिदत्त साग सुन्दर नर युगल की प्राप्ति से उल्लसित हो उठा। उसकी विद्याधर लोक को जीतने की इच्छा साकार जो होनी थी। हर्षातिरेक में उसने कोश से तलवार निकाल ली, किन्तु साधु वेश, सौम्य प्रकृति और मृत्यु के सामने खड़ा होने पर भी उनके अपूर्व धैर्य को देख कर उसका हाथ रुक गया । बोला--- मैं तुम्हारा परिचय जानना चाहता हूँ। मुनिकुमार ने कहा--साधु का क्या परिचय। फिर भी कौतूहल हो तो सुनो। [ प्रथम प्राश्वास ]
भरत क्षेत्र में अवन्ति नाम का एक जनपद है। उसकी राजधानी उज्जयिनी शिप्रा नदी के किनारे बसी है। वहाँ राजा यशो राज्य करता था। उसकी चन्द्रमति नाम की रानी थी। उन दोनों के यशोधर नाम का एक पुत्र हुमा । एक दिन राजा ने अपने सिर पर सफेद बाल देखे। उन्हें देखकर उसे वैराग्य हो गया और उसने अपने पुत्र को राज्य देकर संन्यास ले लिया। यशोधर का राज्याभिषेक और अमृतमति के साथ पाणिग्रहण संस्कार शिप्रा के तट पर एक विशाल मण्डा में धूमधाम से सम्पन्न हुआ। [द्वितीय प्राश्वास ] राज्य संचालन में यशोधर का जीवन सुखपूर्वक बीतने लगा।
[तृतीय पाश्वास ] एक दिन राजा यशोधर रानी अमृतमति के साथ विलास करके लेटा ही था कि रानी उसे सोया समझ धीरे से पलंग से उतरी पौर दासी के कपड़े पहन कर महल से निकल पड़ी। यशोधर इस रहस्य को जानने के लिए चुपके से उसके पीछे हो गया। उसने देखा कि रानी गजशाला में पहुँचकर अत्यन्त गन्दे विजयमकरध्वज नामक महावत के साथ नाना प्रकार से विलास कर रही है। उसके पाश्वर्य, क्रोध और घृणा का ठिकाना न रहा। वह क्रोध से तिलमिला उठा और यह सोच कर कि दोनों का एक साथ ही काम तमाम कर दे, उसने कोश से तलवार निकाल ली। पर एक क्षण कुछ सोच कर उलटे पैर लौट पड़ा
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