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________________ परिच्छेद दो यशस्तिलक की कथावस्तु और उसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पहले बताया है कि पूरा यशस्तिलक माठ श्राश्वासों या अध्यायों में विभक्त है । प्रथम श्वास कथावतार या कथा की पृष्ठभूमि के रूप में है और अन्त के तीन प्रश्वासों में उपासकाध्ययन अर्थात् जैन गृहस्थ के प्राचार का विस्तृत वर्णन है । यशोधर की वास्तविक कथा बीच के चार श्राश्वासों में स्वयं यशोधर के मुँह से कहलायी गयी है । बारण की कादम्बरी की तरह कथा जहाँ से प्रारम्भ होती है, उसकी परिसमाप्ति भी वहीं श्राकर होती है। महाराज शूद्रक की सभा में लाया गया वैशम्पायन शुक कादम्बरी की कथा कहना प्रारम्भ करता है और कथावस्तु तीन जन्मों में लहरिया गति से घूमकर फिर यथास्थान पहुँच जाती है । सम्राट मारिदत्त द्वारा आयोजित महानवमी के अनुष्ठान में अपार जन समुदाय के बीच बलि के लिए लाया गया परिव्रजित राजकुमार यशस्तिलक की और रथ के चक्र की तरह एक ही फेरे में आठ अपने मूल सूत्र से फिर जुड़ जाती है । आठ जन्मों यशस्तिलक के प्रासंगिक विस्तृत वर्णनों में कहीं खो न जाये, इसलिए संक्षिप्त कथा का जान लेना प्रावश्यक है । सम्पूर्ण कथावस्तु कथा का आरम्भ करता है जन्मों की कहानी पूरी होकर की लम्बी कहानी का सूत्र इस प्रकार है कथावस्तु यौधेय नाम का एक जनपद था । उसकी राजधानी राजपुर थी। वहां मारिदत्त राज्य करता था । एक दिन उसे वीरभैरव नामक कौल प्राचार्य ने बताया कि चण्डमारी देवी के सामने सभी प्रकार के पशु-युगल के साथ सर्वाङ्ग सुन्दर मनुष्य युगल की अपने हाथ से बलि करने से विद्याधर लोक को जीतने वाले चक्र की प्राप्ति होती है। मारिदच विद्याधर लोक की विजय करने और वहाँ की कमनीय कामनियों के कटाक्षावलोकन की उत्सुकता को रोक न सका । उसने चण्डमारी के मन्दिर में महानवमी के आयोजन को अपूर्व उत्साह और धूमधाम के साथ मनाने की घोषणा कर दी। तैयारियाँ होने लगीं। छोटे-बड़े सभी तरह के पशुप्रों के जोड़े उपस्थित किये गये । कमी थी केवल सर्वाङ्ग सुन्दर मनुष्य युगल की । चारों ओर ऐसे युगल की खोज में राज्य कर्मचारी भेज दिये गये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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