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________________ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन और महल में आकर पलंग पर पुन: लेट गया। महावत के साथ रति करने के बाद रानी लौट पायी और यशोधर के साथ पलंग पर इस तरह चुपके से सो गयी मानो कुछ हुमा भी न हो। ___ इस घटना से यशोधर के मन को बड़ी ठेस लगी। उसका दिल टूट गया। संसार की असारता के विचार उसके मन में बार बार आने लगे। सबेरे प्रतिदिन के अनुसार जब यशोधर राजसभा में पहुँचा तो उसकी माता चन्द्रमति ने उसे उदास देख कर उदासी का कारण पूछा। यशोधर ने बात टालने की दृष्टि से कहा कि उसने आज रात्रि के अन्तिम प्रहर में एक स्वप्न देखा है कि वह अपने राजकुमार यशोमति को राज्य देकर संन्यस्त हो वन को चला गया है। इसलिए वह अपनी कुल परम्परा के अनुसार राजकुमार को राज्य देकर साधु होना चाहता है। यह सुनकर राजमाता चिन्तित हुई और उसने कुल देवी चंडमारी के मंदिर में बलि चढ़ाकर स्वप्न की शान्ति करने का उपाय बताया। यशोधर पशु हिंसा के लिए किसी भी मूल्य पर तैयार नहीं हुआ तो राजमाता ने कहा कि आटे का मुर्गा बना कर उसी की बलि करेंगे। यशोधर को विवश होकर यह मानना पड़ा। उसने सोचा कि कहीं राजमाता पुत्र के द्वारा अवज्ञा होने पर कोई प्रनिष्ट न कर बैठे, इसलिए उसने मां की बात मान ली। एक ओर चंडमारी के मन्दिर में बलि का आयोजन, दूसरी ओर कुमार यशोमति के राज्याभिषेक की तैयारी होने लगी। अमृतमति को जब यह समाचार ज्ञात हुआ तो वह हृदय से प्रसन्न हो उठी। फिर भी दिखावा करती हई बोली-स्वामिन् ! मुझे छोड़कर भाप संन्यास लें, यह ठीक नहीं। अत: कृपा करके मुझे भी अपने साथ वन ले चलें। यशोधर कुलटा रानी भी इस ढिठाई से तिलमिला उठा। उसे गहरी चोट लगी, फिर भी बात को पी गया। मन्दिर में जाकर उसने आटे के मुर्गे की बलि चढ़ायी। इससे उसकी माँ तो प्रसन्न हुई, किन्तु रानी को दुःख हा कि कहीं राजा का वैराग्य क्षणिक न हो। उसने बलि किये हुए उस आटे के मुर्गे के प्रसाद को पकाते समय उसमें विष मिला दिया, जिसके खाने से यशोधर और उसकी मां, दोनों की मृत्यु हो गयी। चतुर्थ प्राश्वास] मृत्यु के बाद दोनों माँ और बेटे छः जन्मों तक पशुयोनि में भटकते रहे। पहले जन्म में यशोधर मोर हुआ और उसकी माँ चन्द्रमति कुत्ता। दूसरे जन्म में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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