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________________ ४० यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन एक अतिरिक्त प्रमाण के रूप में सोमदेव का देवान्त नाम भी इस बात का द्योतक है कि सोमदेव का गुर्जर प्रतिहार नरेशों से पारिवारिक सम्बन्ध रहा। यद्यपि साधु होने के बाद पहले का नाम प्रायः बदल दिया जाता है, किन्तु सम्भव है शब्द या अर्थ परिवर्तन के साथ सोमदेव ने किसी तरह अपना नाम भी सुरक्षित रख लिया हो। यह कहा जा सकता है कि सोमदेव जिस संघ के साधु थे वह संघ ही देवान्त नाम वाला था। इसलिए सोमदेव का नाम भी देवान्त रखा गया। यह भी उतनी ही सम्भावना के रूप में ग्रहण किया जा सकता है, जितनी सम्भावना के रूप में प्रथम बात। अन्त में पर्भनी शिलालेख के उल्लेख पर भी विचार कर लेना आवश्यक है। इस शिलालेख में सोमदेव के दादा गुरु को गौड़संघ का कहा गया है ।३२ स्व० पण्डित नाथूराम प्रेमी श्रमणवेलगोला के शिलालेख में उल्लिखित गोल या गोल्ल से गौड़ की पहचान करते हैं। प्रो. हन्दिकी दक्षिण कनारा की गौड़ जाति से गौड़ संघ के सम्बन्ध की सम्भावना प्रकट करते हैं। वास्तव में सोमदेव और गुर्जर प्रतिहारों के सम्बन्धों पर विचार करते हुए ये दोनों सम्भावनाएँ ठीक नहीं लगती। कन्नौज के गुर्जर प्रतिहारों का साम्राज्य दूर-दूर तक था। दो गौड़ जनपद इसके अन्तर्गत थे। पश्चिम बङ्गाल को भी उस समय गौड़ कहा जाता था और उत्तर कौशल अर्थात् अवध के एक भाग को भी। बहुत सम्भव है कि यशोदेव उत्तर कौशल के रहे हों। अथवा प्रो. हन्दिकी के सुझावानुसार यदि गौड़ संघ और यशोदेव का सम्बन्ध दक्षिण कनारा की गौड़ जाति से भी मान लिया जाय तो भी इससे सोमदेव के महेन्द्रदेव के अनुज होने न होने पर प्रभाव नहीं पड़ता। राष्ट्रकूट और गुर्जर प्रतिहारों के पारिवारिक सम्बन्ध इतिहास में सुविदित हैं। सम्भव है महेन्द्रदेव द्वितीय के गद्दी पर बैठने के बाद सोमदेव दक्षिण भारत चले गये हों और कालान्तर में वहीं गौड़ संघ में मुनि हो गये हों। निष्कर्ष रूप में यह स्वीकार न भी किया जाये कि सोमदेव महेन्द्रदेव के अनुज थे, तो भी यशस्तिलक से यह स्पष्ट है कि सोमदेव का सम्बन्ध विराट ३२. श्री गौडसंघमुनिमान्यकीर्तिनाम्ना यशोदेव इति प्रजज्ञे । __ -प्रेमी जैन साहित्य और इतिहास में उद्ध त, पृ० ९० ३३. ओझा-राजपूताने का इतिहास, भाग १, पृ. ४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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