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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
महेन्द्रपालदेव द्वितीय
महेन्द्रपालदेव द्वितीय का समय ६४५-६ ई० माना जाता है ।२८ सोमदेव इस समय सम्भवतया ३५-३६ वर्ष के रहे होंगे। इसलिए महेन्द्रपालदेव द्वितीय और सोमदेव के पारस्परिक सम्बन्धों में कालिक कठिनाई नहीं पाती।
इन्द्र तृतीय
प्रथम महेन्द्रदेव के पुत्र और द्वितीय महेन्द्रदेव के पितृव्य महीपालदेव (६.१४-६१७ ई०) का राष्ट्रकूट नरेश इन्द्र तृतीय (नित्यवर्ष) के साथ युद्ध हुप्रा था । चंडकौशिक नाटक की प्रस्तावना में आर्य क्षेमीश्वर ने लिखा है -
"आदिष्टोऽस्मि श्रीमहीपालदेवेन यस्येमां पुराविदाः प्रशस्तिगाथामुदाहरन्ति--
यः संमृत्यप्रकृतिगहनामार्यचाणक्यनीति जित्वा नन्दान्कुसुमनगरं चन्द्रगुप्तो जिगाय । कोणत्वं ध्रुवमुपगतानद्य तानेव हन्तुं
दोदोव्यः सः पुनरभवच्छीमहीपालदेवः ॥" अर्थात् उन महीपालदेव ने मुझे आज्ञा दी है, पुराविद लोग जिनकी इस प्रशस्ति गाथा को उद्धृत करते हैं कि जिस चन्द्रगुप्त ने स्वभाव से गहन चाणक्यनीति का सहारा लेकर नन्दों को जीतकर कुसुमपुर (पटना) में प्रवेश किया, वही चन्द्रगुप्त कर्णाटक में जनमे हुए उन्हीं नन्दों ( राष्ट्रकूटों) को मारने के लिए महीपालदेव के रूप में अवतरित हप्रा है।।
इससे ज्ञात होता है कि राष्ट्रकूटों पर चढ़ाई करते समय महीपालदेव ने मार्य चाणक्य की नीति (अर्थशास्त्र) का अवलम्बन किया था और आर्य क्षेमीश्वर उसे प्रकृति गहन बतलाते हैं तब आश्चर्य नहीं कि महीपाल देव के उत्तराधिकारी महेन्द्रपालदेव ने सोमदेव से कह कर सरल नीतिग्रन्थ नीतिवाक्यामृत की रचना करायो हो । २९
नीतिवाक्यामृत का रचनाकाल
यद्यपि नीतिवाक्यामृत के रचनाकाल तथा रचना स्थान का ठीक पता नहीं
२८. दी एज ऑव इम्पीरियल कन्नौज, पृ० ३७ २९ १० नाथराम प्रेमो-सोमदेव सूरि और महेन्द्रदेव, जैन सिद्धान्त भास्कर, ___ भाग १, किरण २
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