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यशस्तिलक और सोमदेव सूरि
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महेन्द्रपालदेव प्रथम
महेन्द्रपालदेव प्रथम का समय ८८५ ई० से ९०७.८ ईसवी तक माना जाता है । यह महाराज भोज ८३६-८८५ ई. के बाद राजगद्दी पर बैठा था। महाकवि राजशेखर को बालकवि के रूप में इसका संरक्षण प्राप्त था।२३ राजशेखर त्रिपुरी के युवराजदेव द्वितीय के समय (९९० ई०) करीब ९० वर्ष की अवस्था में विद्यमान थे।२४ सोमदेव ने अपने यशस्तिलक में महाकवियों के उल्लेख के प्रसंग में राजशेखर को अन्तिम महाकवि के रूप में उल्लिखित किया है ।२५ यशस्तिलक को सोमदेव ने ५५९ ई० में रचकर समाप्त किया था । २६ यह उनके परिपक्व जीवन की रचना है। यह बात उनके इस कथन से भी झलकती है कि जिस तरह गाय सूखा घास खाकर मधुर दूध देती है, उसी तरह मेरी बुद्धि रूपी गौ ने जीवन भर तर्क रूपी सूखी घास खायी, फिर भी सजनों के पुण्य से यह (यशस्तिलक) काव्य रूपी मधुर दुग्ध उत्पन्न हुमा । २७ इतना होने पर भी यशस्तिलक की समाप्ति के समय सोमदेव को पचास वर्ष से अधिक का नहीं माना जा सकता, क्योंकि ६६० ई० में राजशेखर ६० वर्ष के थे और सोमदेव ने उन्हें महाकवि के रूप में उल्लिखित किया है । यदि राजशेखर को सोमदेव से ८-१० वर्ष भी ज्येष्ठ न माना जाये तो सोमदेव द्वारा राजशेखर को महाकवि कहना कठिन है । सोमदेव स्वयं एक महाकवि थे। एक महाकवि के द्वारा दूसरे को महाकवि जितना प्रादर देने के लिए साधारणतया इतना अन्तर भी कम है। ___ इस प्रकार सोमदेव का आविर्भाव ६०८-६ ई० के आसपास मानना चाहिए। महेन्द्रपालदेव प्रथम का समय जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है, ६०७.८ ई. तक माना जाता है। इस समय सोमदेव का या तो जन्म ही न हुआ होगा या फिर अवस्था अत्यल्प रही होगी। इसलिए इन महेन्द्रपालदेव के मान हपर नीतिवाक्यामृत की रचना का प्रश्न नहीं उठता।
२२. वही, पृ० ३३ २३. २४ दी क्रोनोलॉजिकल आर्डर ऑव राजशेखराज़ वर्क्स, पृ० ३६५-३६६ २५. यशस्तिलक पृ० १५३ उत्त. २६ वही पृ. ४१७ उत्त. २७. आजन्मसमभ्यस्ताच्छुष्कात्तातणादिव ममास्यः ।
मतिसुरभेरभव ददं सूक्तिपयः सुकृतिनां पुण्यैः ॥ - यश आ० । ५
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