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________________ ३२ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन सोमदेव सूरि यशस्तिलक आचार्य सोमदेव का कीर्तिस्तंभ है । यह उनकी तलस्पशिनी विमल प्रज्ञा, बिम्बग्राहिणी सर्वतोमुखी प्रतिभा तथा प्रशस्त प्रकाण्ड पांडित्य का मूर्तिमान स्मारक है। वे एक महान तार्किक, सरस साहित्यकार, कुशल राजनीतिज्ञ, प्रबुद्ध तत्वचिंतक और उच्चकोटि के धर्माचार्य थे। उनके लिए प्रयुक्त होने वाले स्याद्वादाचलसिंह, ताकिकचक्रवर्ती, वादीभपंचानन, वाक्कल्लोलपयोनिधि, कविकुलराजकुंजर, अनवद्यगद्यपद्यविद्याधरचक्रवर्ती प्रादि विशेषण उनकी उत्कृष्ट प्रज्ञा और प्रभावकारी व्यक्तित्व के परिचायक हैं। सोमदेव ने यशस्तिलक में लिखा है कि वे देवसंघ के साधु श्री नेमिदेव के शिष्य तथा यशोदेव के प्रशिष्य थे।१० सोमदेव ने अपना यशस्तिलक चालुक्यवंशीय परिकेसरी के प्रथम पुत्र वहिग की राजधानी गंगधारा में पूर्ण किया था। यह वंश राष्ट्रकूटों के अधीन सामन्त पदवीधारी था। अरिकेसरिन् तृतीय के दानपत्र में कहा गया है कि 'प्ररिकेसरी' ने अपने पिता वद्दिग के 'शुभधामजिनालय' नामक मन्दिर की मरम्मत आदि करके शक संवत ८८८ (सन् ९६६ ई.) के बाद वैशाख मास की पूर्णिमा को बुधवार के दिन श्री सोमदेवसूरि को सव्विदेश सहस्रान्तर्गत रेपाक द्वादशों में का बनिकटुपुल (वर्तमान बोटुडपुल्ल, हैदराबाद के करीमनगर जिले में) नामक ग्राम त्रिभोगाभ्यन्तरसिद्धि और सर्व नमस्य सहित जलधारा छोड़कर दिया। ९. स्याद्वादाचलसिंह-ताकिकचक्रवर्ति-वादीमपंचानन-वाक्कल्लोलपयोनिधि-कविकुल राजकुँजरप्रभृतिप्रशस्तिप्रशस्तालंकारेण । -नीतिवाक्यामृत प्रशस्ति । १०. श्रीमानस्ति स देवसंघतिलको देवो यशः पूर्वकः, शिष्यस्तस्य बभूव सद्गुणनिधिः श्रीनेमिदेवाहयः । तस्याश्चर्यतपः स्थितेनिनवतेजेतुर्महावादिनाम्, शिष्योऽभूदिह सोमदेव इति यस्तस्येष काव्यक्रमः ।। -यश• उत्त०, पृ. ४१८ ११.निजपितुः श्रीमद्वद्यगस्य शुभधामजिनालयाख्यवस (तेः) खण्डस्फुटितनवसुधा कर्मवलिनिवेद्यार्थ शकाग्देष्वष्टाशीत्यधिकेष्वष्टशतेषु गतेषु (प्रवर्तमानक्षयसंवत्सरवैसाखपो (पौ) एणमास्या (स्यां) बुधवासरे तेन श्रीमदरिकेसरिणा अनन्तरोक्ताय तस्मै श्रीसोमदेवसूरये सव्विदेशसहस्रान्तर्गतरेपाकद्वादशग्रामीमध्येकुत्तुंवृत्ति वनिकटुपुलनामा ग्रामः त्रिभोगाभ्यान्तरसिद्धिसर्वनमस्यस्सोदकधारन्दत्तः । -जैन साहित्य और इतिहास में उद्धृत, पृ० १९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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