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________________ यशस्तिलक और सोमदेव सूरि ३१ उतने ही श्रीदेव के टिप्पण भी दे दिये हैं । इस संस्करण में सम्पादक ने मूल पाठ को प्राचीन प्रतियों से बहुत कुछ शुद्ध किया है । पिछले ५-६ दशकों में पत्र-पत्रिकाओंों में भी सोमदेव श्रौर यशस्तिलक पर विद्वानों के कई लेख प्रकाशित हुये हैं, जिनमें स्व० पं० नाथूराम प्रेमी, स्व० पं० गोविन्दराम शास्त्री, डॉ० वी० राघवन् तथा डॉ० ई० डी० कुलकर्णी के लेख विशेष महत्त्वपूर्ण हैं | यशस्तिलक के अंतिम तीन श्राश्वासों का पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री ने संपादन और हिन्दी अनुवाद किया है, जो सन् १९६४ के अन्त में उपासकाध्ययन नाम से प्रकाशित हुआ है । प्रारम्भ में संपादक ने छयानबे पृष्ठों की हिन्दी प्रस्तावना भी दी है। पं० जिनदास शास्त्री, सोलापुर ने श्रुतसागर सूरि की टीका की पूर्ति स्वरूप संस्कृत टीका लिखी है, वह भी इसके अन्त में मुद्रित हुई है । यशस्तिलक पर अब तक जितना कार्य हुआ उसका यह संक्षिप्त लेखा-जोखा है । यशस्तिलक की महनीयता को देखते हुये यह कार्य अत्यल्प है और इसके बाद भी यशस्तिलक में बहुत-सी सामग्री ऐसी बच रहती है जिसका विवेचन नितान्त श्रावश्यक है । और जिसके बिना यशस्तिलक की सम्पूर्ण सामग्री का भारतीय सांस्कृतिक इतिहास और साहित्य की नवीन उपलब्धियों में उपयोग नहीं किया जा सकता । प्रो० हन्दिकी ने अपने ग्रन्थ में यशस्तिलक के जिन विषयों की विवेचना की है, वह नि:संदेह महत्त्वपूर्ण है । उन्होंने जिस-जिस विषय को लिया है, उसके विषय में सोमदेव की ही तरह पूरी निष्ठा, विद्वत्ता और श्रमपूर्वक पर्याप्त और प्रामाणिक जानकारी दी है । मेरी समझ में यशस्तिलक के सही प्रध्ययन का यह श्रीगणेश मात्र है । श्रीगणेश मंगलमय हुआ यह परम शुभ एवं आनंद का विषय है । प्रो० हन्दिकी जैसे अनेक विद्वान् जब यशस्तिलक के परिशीलन में प्रवृत्त होंगे, तभी उसकी बहुमूल्य सामग्री का ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न शाखा प्रशाखाओं में उपयोग किया जा सकेगा । यशस्तिलक तो विविध प्रकार की बहुमूल्य सामग्री का भंडार है । श्रध्येता ज्यों-ज्यों इसके तल में पैठता है, उसे मौर-नौर सामग्री उपलब्ध होती जाती है । इसी कारण स्वयं सोमदेव ने विद्वानों को निरन्तर आनुपूर्वी से इसका विमर्श करते रहने की मंत्रणा दी है (अजस्रमनुपूर्वशः कृती विमृशन्, यश उत्त०, पृ० ४१८) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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