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________________ ३० यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन उतार दें । निःसन्देह सोमदेव को श्रपने इस उद्देश्य में पूर्ण सफलता मिली । यशस्तिलक जैसे महनीय ग्रन्थ की रचना दशमी शती की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है । सामग्री की इस विविधता और प्रचुरता के कारण यशस्तिलक को स्वयं सोमदेव के शब्दों में एक महान् अभिधान कोश कहना चाहिए | बना आया, पर यशस्तिलक में सामग्री को जितनी विविधता श्रौर प्रचुरता है, उतनी ही उसकी शब्द सम्पत्ति और विवेचन शैली की दुरूहता भी । इसलिए जिस वैदुष्य और यत्न के साथ सोमदेव ने यशस्तिलक की रचना की, शायद ही उससे कम वैदुष्य और प्रयत्न यशस्तिलक के हार्द को समझने में लगे | संभवतया इस दुरूहता के कारण ही यशस्तिलक साधारण पाठकों की पहुँच से दूर दक्षिण भारत से लेकर उत्तर भारत, राजस्थान और गुजरात के शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध यशस्तिलक की हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ इस बात की प्रमारण हैं कि पिछली शताब्दियों मे भी यशस्तिलक का सम्पूर्ण भारतवर्ष में मूल्यांकन हुआ । बीसवीं शती में पीटरसन और कीथ जैसे पाश्चात्य विद्वानों का ध्यान यशस्तिलक की महत्ता और उपयोगिता की ओर श्राकर्षित हुआ है । भारतीय विद्वानों ने भी अपनी इस निधि की ओर अब दृष्टि डाली है । सम्पूर्ण यशस्तिलक श्रुतसागर सूरि की अपूर्ण संस्कृत टीका के साथ दो जिल्दों में अब तक केवल एक बार लगभग साठ वर्ष पूर्व निर्णयसागर प्रेस, बम्बई से प्रकाशित हुआ था। तीन माश्वासों का पूर्व खण्ड सन् १६०१ में और पाँच श्राश्वासों का उत्तर खण्ड सन् १९०३ में । पूर्व खण्ड सन् १९१६ में पुनर्मुद्रित भी हुआ था । इस संस्करण में पाठ की अनेक अशुद्धियाँ हैं । उत्तर खण्ड में तो अत्यधिक हैं । सन् १६४६ में बम्बई से केवल प्रथम श्राश्वास श्री जे० एन० क्षीरसागर द्वारा अंगरेजी टिप्पण आदि के साथ सम्पादित होकर प्रकाशित हुना था । सन् १६४६ में शोलापुर से प्रो० कृष्णकान्त हन्दिकी का ' यशस्तिलक एण्ड इंडियन कल्चर' प्रकाश में आया । इसमें प्रो० हन्दिकी ने यशस्तिलक की सांस्कृतिक- विशेषकर धार्मिक और दार्शनिक सामग्री का विद्वत्तापूर्ण श्रध्ययन और विश्लेषण प्रस्तुत किया है । सन् १६६० में वाराणसी से पं० सुन्दरलाल शास्त्री ने हिन्दी अनुवाद के साथ प्रथम तीन प्राश्वासों का सम्पादन करके प्रकाशन किया है । अन्त में लगभग ८. अभिधाननिधानेऽरिमन् । -- Jain Education International पृ० ४५८ उत्त For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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