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यशस्तिलक और सोमदेव सूरि
इस दानपत्र में भी सोमदेव को, यशस्तिलक के उल्लेख के समान ही नेमिदेव का शिष्य तथा यशोदेव का प्रशिष्य बताया है। अन्तर केवल इतना है कि सोमदेव ने यशोदेव को देवसंध का लिखा है जब कि इस दानपत्र में उन्हें गौड़संघ का कहा गया है । १२
देवसंघ और गौड़संघ दो नाम एक ही मुनि संघ के प्रतीत होते हैं। संभवत: यशोदेव, नेमिदेव, सोमदेव प्रादि देवान्त नामों के कारण इस संघ का नाम देवसंघ पड़ा हो तथा देश के आधार पर, द्रविड़ देश का द्रविड़संघ, पुन्नाट देश का पुन्नाटसंघ, तथा मथुरा का माथुरसंघ आदि की तरह गौड़ देश के वासी होने से गोड़संघ नाम हो गया हो। अपने देश से बाहर जाने के बाद मुनिसंघ प्रायः उसी देश के नाम से प्रसिद्ध हो जाते थे ।१३ ।
यशस्तिलक के अतिरिक्त सोमदेव का दूसरा ग्रन्थ नीतिवाक्यामृत उपलब्ध है। यह कौटिल्य के अर्थशास्त्र की तरह एक विशुद्ध राजनीतिक ग्रन्थ है। इसमें बत्तीस समुद्देश हैं, जिनमें राजनीति सम्बन्धी विषयों को सूत्रशैली में लिपिबद्ध किया गया है।
नीतिवाक्यामृत पर दो टीकायें हैं। एक प्राचीन संस्कृत टीका है। इसके लेखक का नाम और समय का पता नहीं चलता। मंगलाचरण से हरिबल नाम अनुमानित किया जाता है। टीका प्राचीन ज्ञात होती है। दूसरी टीका कन्नड़ कवि नेमिनाथ की है। यह संस्कृत टीका की अपेक्षा बहुत संक्षिप्त है।
नीतिवाक्यामृत मूल मात्र बंबई से सन् १८८० में प्रकाशित हया था। सन १९२२ में माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला, बंबई से संस्कृत टीका सहित भी प्रकाशित हुआ। और सन् १९५० में पं० सुन्दरलाल शास्त्री ने मूल का हिन्दी अनुवाद के साथ भी प्रकाशन कराया। एक इटालियन अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है ।
नीतिवाक्यामृत की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि सोमदेव ने षण्णवतिप्रकरण, युक्तिचिन्तामणिस्तव तथा महेन्द्रमातलिसंजल्प को भी रचना की थी।१४
१२. श्रीगौडसंघे मुनिमान्यकीर्तिनाना यशोदेव इति प्रजज्ञे ।वही, श्लोक १५ १३. प्रेमो-जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग , कि० २, पृ० ९३ । १४. इति...... षण्णवतिप्रकरण-युक्तिचिन्तामणि स्तव-महेन्द्रमातलिसंजल्प यशोधर
महाराजचरितप्रमुखवेधसा सोमदेवसू रिणा विरचितं नीतिवाक्यमृतं समाप्तमिति । -नीतिवाक्यामृत प्रशस्ति ।
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