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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
के यशस्तिलक की रचना के कुछ ही सप्ताह पूर्व फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी शक संवत् ८८० ( ६ मार्च सन् ६५६ ई०) को मेलपाटी ( वर्तमान मेलाडी जो उत्तर कट की वांदिवाश तहसील में है) में लिखा गया था । ४
राष्ट्रकूट मध्ययुग में दक्षिण भारत के महाप्रतापी नरेश थे । धारवाड़ कर्नाटक तथा वर्तमान हैदराबाद प्रदेश पर राष्ट्रकूटों का प्रखण्ड राज्य था । लगभग आठवीं शती के मध्य से लेकर दशमी शती के अन्त तक राष्ट्रकूट सम्राट न केवल भारतवर्ष में, प्रत्युत पश्चिम के प्ररब साम्राज्य में भी प्रत्यन्त प्रसिद्ध थे । अरबों के साथ उन्होंने विशेष मंत्री का व्यवहार रखा और उन्हें अपने यहाँ व्यापार की सुविधाएँ दीं । इस वंश के राजाओं का विरुद वल्लभराज प्रसिद्ध था जिसका रूप अरब लेखकों से बल्हरा पाया जाता है | 9
राष्ट्रकूटों के राज्य में साहित्य, कला, धर्म और दर्शन की चतुर्मुखी उन्नति हुई । उस युग की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को आधार बनाकर अनेक ग्रन्थों की रचना की गयी । यशस्तिलक उसी युग की एक विशिष्ट कृति है । यह अपने प्रकार का एक विशिष्ट ग्रन्थ है । एक उत्कृष्ट काव्य के सभी गुण इसमें विद्यमान हैं । कथा और आख्यायिका के श्लिष्ट, रोमांचकारी और रोचक वर्णन, गद्य और पद्य के सम्मिश्रण का रुचि वैचित्र्य, रूपक के प्रभावकारी प्रोर हृदयग्राही सरल कथनोपकथन, महाकाव्य का वृत्तविधान, रससिद्धि, अलंकृत चित्रांकन तथा प्रसाद और माधुर्यं युक्त सरस शैली, सुरुचिपूर्ण कथावस्तु और साहित्यकार के दायित्व का कलापूर्ण निर्वाह, यह यशस्तिलक का साहित्यिक स्वरूप है । गद्य का पद्यों जैसा सरल विन्यास, प्राकृत छन्दों का संस्कृत में अभिनव प्रयोग तथा अनेक प्राचीन अप्रसिद्ध शब्दों का संकलन यशस्तिलक के साहित्यिक स्वरूप की अतिरिक्त विशेषतायें हैं । संस्कृत साहित्य सर्जन के लगभग एक सहस्र वर्षों में सुबन्धु, बाण और दण्डि के ग्रन्थों में गद्य का, कालिदास, भवभूति और भारवि के महाकाव्यों में पद्य का तथा भास और शुद्रक के नाटकों में रूपक रचना का जो विकास हुआ, उसका और अधिक परिष्कृत रूप यशस्तिलक में उपलब्ध होता है ।
काव्य के विशेष गुणों के प्रतिरिक्त यशस्तिलक में ऐसी प्रचुर सामग्री है, जो इसे प्राचीन भारत के सांस्कृतिक इतिहास की विभिन्न विधानों से जोड़ती है,
४. वही
५. अल्तेकर - राष्ट्रकूटाज एन्ड देयर टाइम्स (विशेष विवरण के लिए )
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