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परिच्छेद एक
यशस्तिलक और सोमदेव सूरि
यशस्तिलक
सोमदेव सूरि कृत यशस्तिलक महाराज यशोधर के जीवनचरित्र को प्राधार बनाकर गद्य और पद्य में लिखा गया एक महत्वपूर्ण संस्कृत ग्रन्थ है । इसमें आठ प्रश्वास या अध्याय हैं। पूरे ग्रन्थ में दो हजार तीन सौ ग्यारह पद्य तथा शेष गद्य है । सोमदेव ने गद्य और पद्य दोनों को मिलाकर आठ हजार श्लोक प्रमाण बताया है । '
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यशस्तिलक का रचनाकाल निश्चित है, इसलिए इसके अनुशीलन में वे अनेक कठिनाइयाँ नहीं आतीं, जो समय की अनिश्चितता के कारण प्राचीन भारतीय साहित्य के अनुशीलन में साधारणतया उपस्थित होती हैं । सोमदेव ने यशस्विलक के अन्त में स्वयं लिखा है कि चैत्र शुक्ल त्रयोदशी शक संवत् ८८१ (६५६ ई०) को जिस समय श्री कृष्णराजदेव पाण्ड्य सिंहल, चोल, चेर आदि राजाओं को जीतकर मेनटी सेना शिविर में थे, उस समय उनके चरण कमलोपजीवी, चालुक्यवंशीय प्ररिकेसरी के प्रथम पुत्र सावंत दिग ( वद्यग ) को राजधानी गंगधारा में यह काव्य रचा गया । २
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राष्ट्रकूट नरेश कृष्णराज तृतीय के एक दानपत्र में भी सोमदेव के विवरण के समान ही कृष्ण राजदेव की दिग्विजय का उल्लेख है । ३ यह दानपत्र सोमदेव
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१. एतामष्टसहस्रीम् । - १० ४१८ उत०
२. शक कालातीत पंवत्सरशते काशत्यधिकेषु गतेषु अंतः (८८१) सिद्वार्थसंवत्सरान्तर्गत चैत्रमासमहनत्रयोदश्यां पाण्डय सिंहल - चोल चे रमनभृतीन्महीपतीनू साध्य प्रवर्धमान राज्यप्रभः वे श्रीकृष्णराजदेवे सति तत्पादपद्मोपजीविनः समधिगतपंचमहाश दम हा सामन्ताधिपतेश्चालुक्यकुल जन्मनः सामन्त चूडामयेः श्रीमदरिके परिणः प्रथमपुत्रस्य श्रीमद्यगराजप्रवर्धमानव सुधारायां गंगधारायां विनिर्मापितमिदं काव्यमिति । - यश० उत्त०, पृ० ४१८ ३. कृस्वादक्षिणदिग्जयोद्यतधिया चौलान्वयोन्मूलनम् । निजमृत्य वर्गपरितश्चेरन्मपाण्ड्या दिकान् ॥ येनोच्चैः सह सिंहलेन करदान् सन्मण्डलाधीश्वरान् । न्यस्तः कीर्तिलतांकुर प्रतिकृतिस्तम्भश्च रामेश्वरे ॥
तद्भूमिं
- एपिग्राफिया इंडिका, भा० ४ श्रध्याय ६-७, दी करहाट प्लेट्स इन्सक्रिप्शन ।
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