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( २२ ) पंचम अध्याय यशस्तिलक को शब्द सम्पत्ति विषयक है। यशस्तिलक संस्कृत के प्राचीन, अप्रसिद्ध, अप्रचलित तथा नवीन शब्दों का एक विशिष्ट कोश है। सोमदेव ने प्रयत्नपूर्वक ऐसे अनेक शब्दों का यशस्तिलक में संग्रह किया है। वैदिक काल के बाद जिन शब्दों का प्रयोग प्रायः समाप्त हो गया था, जो शब्द कोश ग्रन्थों में तो आये हैं. किन्तु जिनका प्रयोग साहित्य में नहीं हुआ या नहीं के बराबर हुमा, जो शब्द केवल व्याकरण ग्रन्थों में सीमित थे तथा जिन शब्दों का प्रयोग किन्हीं विशेष विषयों के ग्रन्थों में ही देखा जाता था, ऐसे अनेक शब्दों का संग्रह यशस्तिलक में उपलब्ध होता है । इसके अतिरिक्त यशस्तिलक में ऐसे भी बहुत से शब्द हैं, जिनका संस्कृत साहित्य में अन्यत्र प्रयोग नहीं मिलता। कुछ शब्दों का तो अर्थ और ध्वनि के आधार पर सोमदेव ने स्वयं निर्माण किया है। लगता है सोमदेव ने वैदिक, पौराणिक, दार्शनिक, व्याकरण, कोश, प्रायुर्वेद, धनुर्वेद, अश्वशास्त्र, गजशास्त्र, ज्योतिष तथा साहित्यिक ग्रन्थों से चुनकर विशिष्ट शब्दों की पृथक् पृथक् सूचियां बना ली थीं और यशस्तिलक में यथास्थान उनका उपयोग करते गये । यशस्तिलक की शब्द सम्पत्ति के विषय में सोमदेव ने स्वयं लिखा है कि 'काल के कराल व्याल ने जिन शब्दों को चाट डाला उनका मैं उद्धार कर रहा हूँ। शास्त्र-समुद्र के तल में डूबे हुये शब्द-रत्नों को निकालकर मैंने जिस बहुमूल्य आभूषण का निर्माण किया है, उसे सरस्वती देवी धारण करे' (पृ० २६६ उ० प्र०)।
प्रस्तुत प्रबन्ध में मैंने ऐसे लगभग एक सहस्र शब्द दिये हैं। पाठ सौ शब्द इस अध्याय में हैं तथा दो सौ से भी अधिक शब्द अन्य अध्यायों में यथास्थान दिये हैं। इस अध्याय में शब्दों को वैदिक, पौराणिक, दार्शनिक प्रादि श्रेणियों में वर्गीकृत न करके अकारादि क्रम से प्रस्तुत किया गया है। शब्दों पर मैंने तीन प्रकार से विचार किया है-(१) कुछ शब्द ऐसे हैं, जिन पर विशेष प्रकाश डालना उपयुक्त लगा। ऐसे शब्दों का मूल संदर्भ, अर्थ तथा आवश्यक टिप्पणी दी गयी है। (२) सोमदेव के प्रयोग के आधार पर जिन शब्दों के अर्थ पर विशेष प्रकाश पड़ता है, उन शब्दों के पूरे संदर्भ दे दिये हैं। (३) जिन शब्दों का केवल अर्थ देना पर्याप्त लगा, उसका संदर्भ संकेत तथा अर्थ दिया है।
शब्दों पर विचार करने का प्राधार श्रीदेव कृत टिप्पण तया श्रुतसागर की अपूर्ण संस्कृत टीका तो रहे ही हैं, प्राचीन शब्द कोश तथा मोनियर विलियम्स और प्रो० आप्टे के कोशों का भी उपयोग किया गया है। स्वयं सोमदेव का प्रयोग भी प्रसंगानुसार शब्दों के अर्थ को खोलता चलता है । श्लिष्ट, क्लिष्ट,
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