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अप्रचलित तथा नवीन शब्दों के कारण यशस्तिलक दुरूह अवश्य लगता है, किन्तु यदि सावधानीपूर्वक इसका सूक्ष्म अध्ययन किया जाये तो क्रम क्रम से यशस्तिलक के वर्णन स्वयं ही आगे पीछे के संदर्भों को स्पष्ट करते चलते हैं । इस प्रकार यशस्तिलक की कुञ्जी यशस्तिलक में ही निहित है । सोमदेव की इस बहुमूल्य सामग्री का उपयोग भविष्य में कोश ग्रन्थों में किया जाना चाहिए ।
इस तरह उपर्युक्त पांच अध्यायों के पच्चीस परिच्छेदों में प्रस्तुत प्रबन्ध पूर्ण होता है ।
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