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________________ कदलीप्रवालमेखला, कर्णोत्पल, कर्णपूर या कर्णफूल, मृणालवलय, पुन्नागमाला, बंधूकनूपुर, शिरीषजंघालंकार, शिरीषकुसुमदाम, विचकिलहारयष्टि तथा कुरवकमुकुलस्रक । इन सबके विषय में प्रस्तुत परिच्छेद में जानकारी दी गयी है। परिच्छेद दश में शिक्षा और साहित्य विषयक सामग्री का विवेचन है। बाल्यावस्था शिक्षा का उपयुक्त समय माना जाता था। गुरुकुल प्रणाली शिक्षा का प्रादर्श थी। शिक्षा समाप्ति के बाद गोदान दिया जाता था। शिक्षा के अनेक विषयों का सोमदेव ने उल्लेख किया है। अमृतमति महारानी की द्वारपालिका को समस्त देशों की भाषा और वेश की जानकार कहा गया है। तर्कशास्त्र, पुराण, काव्य, व्याकरण, गणित, शब्दशास्त्र, धर्माख्यान, प्रमाणशास्त्र, राजनीति. गज और अश्व शिक्षा, रथ, वाहन और शस्त्रविद्या, रत्नपरीक्षा, संगीत, नाटक, चित्रकला, आयुर्वेद, युद्धविद्या तथा कामशास्त्र शिक्षा के प्रमुख विषय थे। इन्द्र, जैनेन्द्र, चन्द्र, अपिशल, पाणिनी तथा पतंजलि के व्याकरणों का अध्ययन अध्यापन होता था। पाणिनी के विषय में सोमदेव ने एक महत्त्व. पूर्ण जानकारी दी है। इनके पिता का नाम परिण या पारिण था। इसीलिए इन्हें परिणपुत्र भी कहा जाता था। गणित को सोमदेव ने प्रसंख्यान शास्त्र कहा है। सोमदेव के समय प्रमाणशास्त्र के रूप में अकलंक-न्याय की प्रतिष्ठा हो चुकी थी। राजनीति में गुरु, शुक्र, विशालाक्ष, परीक्षित, पाराशर, भीम, भीष्म तथा भारद्वाज रचित नीतिशास्त्रों का उल्लेख है। सोमदेव ने गजविद्या में यशोधर को रोमपाद की तरह कहा है। रोमपाद के अतिरिक्त गजविद्या विशेषज्ञों में इभचारी, याज्ञवल्क्य, वाद्धलि ( वाहलि ), नर, नारद, राजपुत्र तथा गौतम का उल्लेख है। कुल मिलाकर यशस्तिलक में गजविद्या विषयक प्रभूत सामग्री है। गजोत्पत्ति की पौराणिक अनुश्रुति, उत्तम गज के गुण, गजों के भद्र, मन्द, मृग और संकीर्ण भेद, गजों की मदावस्था, उसके गुण-दोष और चिकित्सा, गज-परिचारक, गजशिक्षा इत्यादि के विषय में सोमदेव ने विस्तार से लिखा है। मैंने उपलब्ध गजशास्त्रों से इसकी तुलना करके देखा है कि यह सामग्री एक स्वतन्त्र गजशास्त्र के लिए पर्याप्त है। गजशास्त्र की तरह प्रश्वशास्त्र पर भी सोमदेव ने विस्तार से प्रकाश डाला है। राजाश्व के वर्णन में केवल एक प्रसंग में ही पर्याप्त जानकारी दे दी है। रैवत और शालिहोत्र अश्वशास्त्र विशेषज्ञ माने जाते थे। सोमदेव ने अश्व के इकतालीस गुणों की परीक्षा करना अपेक्षित बताया है। यशस्तिलक में इन सभी गुणों के विषय में पर्याप्त जानकारी दी गयी है। अश्वशास्त्र के साथ तुलना करने पर यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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