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प्रकार के कोट पहने मूर्तियाँ मिलती हैं । चण्डातक एक प्रकार का घंघरीनुमा वस्त्र था । इसे स्त्री प्रौर पुरुष दोनों पहनते थे । उष्णीष पगड़ी को कहते थे । भारत में विभिन्न प्रकार की पगड़ियाँ बाँधने का रिवाज प्राचीनकाल से चला श्राया है । छोटे चादर या दुपट्टा को कौपीन कहते थे । उत्तरीय प्रोढ़नेवाला चादर था । चीवर बौद्ध भिक्षुत्रों के वस्त्र कहलाते थे । श्राश्रमवासी साधुओं के वस्त्रों के लिए सौमदेव ने श्रावान कहा है । परिधान पुरुष की धोती को कहते थे । बुन्देलखण्ड की लोकभाषा में इसका परदनिया रूप अब भी सुरक्षित है । उपसंव्यान छोटे अंगौछे को कहते थे । गुह्या कछुटिया या लंगोट था । हंसतुलिका रुई भरे गद्दे को कहा जाता था । उपधान तकिया के लिए बहु प्रचलित शब्द कन्या पुराने कपड़ों को एक साथ सिलकर बनायी गयी रजाई या गदरी नमत ऊनी नमदे थे । निवोल विस्तर पर बिछाने का चादर कहलाता सिचयोल्लोच चन्द्रातप या चंदोवा को कहते थे । इस परिच्छेद में इन समस्त वस्त्रों के विषय में प्रमाणक सामग्री के साथ पर्याप्त प्रकाश डाला गया है । परिच्छेद आठ में यशस्तिलक में उल्लिखित आभूषणों का परिचय दिया गया है । भारतीय प्रलंकारशास्त्र की दृष्टि से यह सामग्री महत्त्वपूर्ण है । सोमदेव ने शिर के आभूषणों में किरीट, मौलि, पट्ट और मुकुट का उल्लेख किया है । किरीट, मौलि और मुकुट भिन्न-भिन्न प्रकार के मुकुट थे } किरीट प्राय: इन्द्र तथा अन्य देवी-देवताओं के मुकुट को कहा जाता था। मौलि प्रायः राजे पहनते थे तथा मुकुट महासामन्त । पट्ट सिर पर बाँधने का एक विशेष आभूषण था, जो प्रायः सोने का बनता था। बृहत्संहिता में पाँच प्रकार
था । थी ।
था ।
पट्ट बताये हैं ।
कर्णाभूषरणों में सोमदेव ने अवतंस, कर्णपूर, करिणका, कर्णोत्पल तथा कुंडल का उल्लेख किया है । अवतंस प्राय: पल्लव या पुष्पों के बनते थे । सोमदेव ने पल्लव, चम्पक, कचनार, उत्पल तथा कैरव के बने अवतंसों के उल्लेख किये हैं । एक स्थान पर रत्नावतंसों का भी उल्लेख है । कर्णपूर पुष्प के आकार का बनता था । देशी भाषा में अभी इसे कनफूल कहा जाता है । करिंणका तालपत्र के आकार का कर्णाभूषरण था । प्राजकल इसे तिकोना कहते हैं । उत्पल के आकार का बना कर्ण का श्राभूषरण करर्णोत्पल कहलाता था । कुण्डल कुड्मल तथा गोल वाली के आकार के बनते थे । इसमें कानों को लपेटने के लिए एक पतली जंजीर भी लगी रहती थी । बुदेलखंड में इस प्रकार के कुण्डलों का देहातों में अब भी रिवाज है ।
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