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किया है । बृहत्कल्पसूत्र की वृत्ति में इसकी व्याख्या आयी हैं। चीन और वाह्वीक से और भी कई प्रकार के वस्त्र प्राते थे । चित्रपट संभवतया वे जामदानी वस्त्र थे, जिनकी बिनावट में ही पशु-पक्षियों या फूल-पत्तियों की भाँत डाल दी जाती थी । बाग ने चित्रपट के तकियों का उल्लेख किया है। पटोल गुजरात का एक विशिष्ट वस्त्र था । श्राज भी वहाँ पटोला साड़ी का प्रचलन है । रल्लिका रल्लक नामक जंगली बकरे के ऊन से बना बेशकीमती वस्त्र था | युवांगच्यांग ने भी इसका उल्लेख किया है । वस्त्रों में सबसे अधिक उल्लेख दुकूल के हैं । श्राचारांग- चूगि तथा निशीथ - चूरिण में दुकूल की व्याख्या श्रायी है । पौण्ड्र तथा सुवर्णकुड्या के दुकूल विशिष्ट होते थे । दुकूल की बिनाई, दुकूल का जोड़ा पहनने का रिवाज, हंस मिथुन लिखित दुकूल के जोड़े, दूकूल के जोड़े पहनने की अन्य साहि त्यिक साक्षी, दूकूल की साड़ियाँ, पलंगपोश, तत्रियों के गिलाफ, दुकूल और क्षौम वस्त्रों में अन्तर और समानता इत्यादि का इस परिच्छेद में पर्याप्त विवेचन किया गया है । अंशुक एक प्रकार का महीन वस्त्र था । यह कई प्रकार का होता था । सफेद तथा रंगीन सभी प्रकार का अंशुक बनता था । भारतीय और चीनी अंशु की अपनी-अपनी विशेषतायें थीं । कौशेय कोशकार कीड़ों से उत्पन्न रेशम से बनता था । इन कीड़ों की चार योनियाँ बतायी गयी हैं। उन्हीं के अनुसार कौशेय भी कई प्रकार का होता था ।
पहनने के वस्त्रों में सोमदेव ने कंचुक, वारबारण, चोलक, चण्डातक, उष्णीष, कौपीन, उत्तरीय, चीवर, आवान, परिधान, उपसंव्यान और गुह्या का उल्लेख किया है। कंचुक एक प्रकार के लम्बे कोट को कहा जाता था और स्त्रियों की चोली को भी । सोमदेव ने चोली के अर्थ में कंचुक का उल्लेख किया है । वारबारण घुटनों तब पहुँचने वाला एक शाही कोट था। भारतीय वेशभूषा में यह सासानी ईरान की वेशभूषा से प्राया । वारबारण पहलवी भाषा का संस्कृत रूप है । शिल्प तथा मृण्मूर्तियों में वारबाग के प्रङ्कन मिलते हैं । स्त्री और पुरुष दोनों वारबारण पहनते थे । वारबारण जिरहबख्तर को भी कहते थे, किन्तु सोमदेव ने कोट के अर्थ में ही प्रयोग किया है । भारतीय साहित्य में वारबारण के उल्लेख कम ही मिलते हैं । चोलक भी एक प्रकार का कोट था । यह और कोटों की अपेक्षा सबसे अधिक लम्बा और ऊपर पहनते थे । उत्तर-पश्चिम भारत में का रिवाज अब भी है । भारत में चोलक के साथ आया और यहाँ की वेशभूषा में समा गया ।
ढीला बनता था । इसे सब वस्त्रों के नौशे के समय चोला या चोलक पहनने संभवतया मध्य एशिया से शक लोगों भारतीय शिल्प में इस
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