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________________ परिच्छेद छह में स्वास्थ्य, रोग और उनकी परिचर्या विषयक सामग्री का विवेचन है । खान-पान और स्वास्थ्य का अनन्य संबंध है। जठ. राग्नि पर भोजनपान निर्भर करता है। मनुष्यों की प्रकृति भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है । ऋतु के अनुसार प्रकृति में परिवर्तन होता रहता है । इसलिए भोजन. पान आदि की व्यवस्था ऋतुनों के अनुसार करना चाहिए। भोजन का समय, सहभोजन, भोजन के समय वर्जनीय व्यक्ति, भोज्य और अभोज्य पदार्थ, विषयुक्त भोजन, भोजन करने की विधि । नोहार या मलमूत्रविसर्जन, अभ्यंग, उद्वर्तन, व्यायाम तथा स्नान इत्यादि के विषय में यशस्तिलक में पर्याप्त सामग्री आयी है। इस सबका इस परिच्छेद में विवेचन किया गया है। रोगों में अजीर्ण, अजीर्ण के दो भेद विदाहि और दुर्जर, दृग्मान्द्य, वमन, ज्वर, भगन्दर, गुल्म तथा सितश्वित के उल्लेख हैं। इनके कारणों तथा परिचर्या के विषय में भी प्रकाश डाला गया है । _ औषधियों में मागधी, अमृता, सोम, विजया, जम्बूक, सुदर्शना, मरुद्भव, अर्जुन, प्रभीरु, लक्ष्मी, वृती, तपस्विनि, चन्द्रले खा, कलि, अर्क, अरिभेद, शिवप्रिय, गायत्री, ग्रन्थिपर्ण तथा पारदरस की जानकारी आयी है। सोमदेव ने आयुर्वेद के अनेक पारिभाषिक शब्दों का भी प्रयोग किया है । इस सब पर इस परिच्छेद में प्रकाश डाला गया है । परिच्छेद सात में यशस्तिलक में उल्लिखित वस्त्रों तथा वेशभूषा का विवेचन है। सोमदेव ने बिना सिले वस्त्रों में नेत्र, चीन, चित्रपटी, पटोल, रल्लिका, दुकूल, अंशुक तथा कौशेय का उल्लेख किया है। नेत्र के विषय में सर्व प्रथम डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने हर्षचरित के सांस्कृतिक अध्ययन में विस्तार से जानकारी दी थी। नेत्र का प्राचीनतम उल्लेख कालिदास के रघुवंश का है। बाण ने भी नेत्र का उल्लेख किया है। उद्योतन मूरि कृत कुवलयमाला (७७९ ई.) में चीन से आने वाले वस्त्रों में नेत्र का भी उल्लेख है। वर्णरत्नाकर में इसके चौदह प्रकार बताये हैं। चौदहवीं शती तक बंगाल में नेत्र का प्रचलन था। नेत्र की पाचूड़ी ओढ़ी सौर बिछायी जाती थी। जायसी ने पदमावत में कई बार नेत्र का उल्लेख किया है। गोरखनाथ के गीतों तथा भोजपुरी लोक गीतों में नेत्र का उल्लेख मिलता है। चीन देश से प्राने वाले वस्त्र को चीन कहा जाता था। भारत में चीनी वस्त्र पाने के प्राचीनतम प्रमाण ईसा पूर्व पहली शताब्दी के मिलते हैं। डॉ० मोती चन्द्र ने इस विषय पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। कालिदास ने शाकुन्तल में चीनांशुक का उल्लेख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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