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________________ जा सकते हैं । सूपशास्त्र विशेषज्ञ पौरोगव का भी उल्लेख है। बिना पकायी खाद्य सामग्री में गोधूम, यव, दीदिवि, श्यामाक, शालि, कलम, यवनाल, चिपिट, सक्तू, मुद्ग, माष, विरसाल तथा द्विदल का उल्लेख है। भोजन के साथ जल किस अनुपात में पीना चाहिए, जल को अमृत और विष क्यों कहा जाता है, ऋतुओं के अनुसार वापी, कूप, तड़ाग, कहाँ का जल पीना उपयुक्त है, जल को संसिद्ध कैसे किया जाता है, इसकी जानकारी विस्तार से दी गयी है। ___ मसालों में दरद, क्षपारस, मरिच, पिप्पली, राजिका तथा लवण का उल्लेख है। स्निग्ध पदार्थ, गोरस तथा अन्य पेय सामग्नी में घृत, आज्य, तेल, दधि, दुग्ध, नवनीत, तक्र, कलि या अवन्ति-सोम, नारिकेलफलांभ, पानक तथा शर्कराढ्यपय का उल्लेख है । घृत, दुग्ध, दधि तथा तक्र के गुणों को सोमदेव ने विस्तार से बताया है। मधुर पदार्थों में शर्करा, शिता, गुड़ तथा मधु का उल्लेख है । साग-सब्जी और फलों की तो एक लम्बी सूची पायी है- पटोल, कोहल, कारवेल, वृन्ताक, बाल, कदल, जीवन्ती, कन्द, किसलय, विस, वास्तूल, तण्डुलीय, चिल्ली, चिर्भटिका, मूलक, आर्द्रक, धात्रीफल, एर्वारु, अलावू, कारु, मालूर, चक्रक, अग्निदमन, रिंगणीफल, आम्र, भाम्रातक, पिचुमन्द, सोभाजन, वृहतीवार्ताक, एरण्ड, पलाण्डु, वल्लक, रालक, कोकुन्द, काकमाची, नागरंग, ताल, मन्दर, नागवल्ली, वाण, आसन, पूग, प्रक्षोल, खजूर, लवली, जम्बीर, अश्वस्थ, कपित्थ, नमेरु, पारिजात, पनस, ककुभ, वट, कुरवक, जम्बू, ददरीक, पुण्ड्रक्षु, मृद्वीका, नारिकेल, उदम्बर तथा प्लक्ष । तैयार की गयो सामग्री में भक्त, सूप, शऽकुली, समिध या समिता, यवागू, मोदक, परमान्न, खाण्डव, रसाल, प्रामिक्षा, पक्वान्न, अवदंश, उपदेश, सपिषिस्नात, अंगारपाचित, दनापरिप्लुत, पयषा-विशुष्क तथा पर्पट के उल्लेख हैं। मांसाहार तथा मांसाहार निषेध का भी पर्याप्त वर्णन है। जैन मांसाहार के तीव्र विरोधी थे, किन्तु कौल-कापालिक आदि सम्प्रदायों में मांसाहार ध मिक रूप से अनुमत था। बध्य पशु, पक्षी तथा जलजन्तुओं में मेष, महिष, मय, मातंग, मितंद्रु, कुंभीर, मकर, मालूर, कुलीर, कमठ, पाठीन, भेरुण्ड, क्रोंच, कोक, कुकुट कुरुर, कलहंस, चमर, चमूरु, हरिण, हरि, वृक, वराह, वानर तथा गोखुर के उल्लेख हैं । मांसाहार का ब्राह्मण परिवारों में भी प्रचलन था। यज्ञ और श्राद्ध के नाम पर मांसाहार की धार्मिक स्वीकृति मान ली गयी थी। इस परिच्छेद में इस सम्पूर्ण सामग्री का विवेचन किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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