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की समाप्ति पर सोमदेव ने गोदान का उल्लेख किया है। बाल्यावस्था में संन्यस्त होने का निषेध किया जाता रहा है, पर इसके भी पर्याप्त अपवाद रहे हैं । यशस्तिलक के प्रमुख पात्र अभयरुचि और अभयमति भी छोटी अवस्था में प्रव्रजित हो गये थे। संन्यस्त व्यक्तियों के लिए आजीवक, कर्मन्दी, कापालिक, कौल, कुमारश्रमण, चित्रशिखंडि, ब्रह्मचारी, जटिल, देशयति, देशक, नास्तिक, परिव्राजक, पाराशर, ब्रह्मचारी, भविल, महाव्रती, महासाहसिक, मुनि, मुमुक्षु, यति, यागज्ञ, योगी, वैखानस, शंसितव्रत, श्रमण, साधक, साधु और सूरि शब्दों का प्रयोग हुआ है। इनके अतिरिक्त सोमदेव ने कुछ और नामों की व्युत्पत्तियां दी हैं। इनमें से अधिकांश अपने-अपने सम्प्रदाय विशेष को व्यक्त करते हैं । इनके विषय में संक्षेप में जानकारी दी गयी है।
परिच्छेद चार में पारिवारिक जीवन और विवाह की प्रचलित मान्यताओं पर प्रकाश डाला गया है। सोम देवकालीन भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली का प्रचलन था। सोमदेव ने चिरपरिचित पारिवारिक सम्बन्ध पति, पत्नी, पुत्र आदि का सुन्दर वर्णन किया है। बालक्रीड़ानों का जैसा हृदयग्राही वर्णन यशस्तिलक में है, वैसा अन्यत्र कम मिलता है। स्त्री के भगिनी, जननी, दूतिका, सहचरी, महानसकी, धातृ, भार्या प्रादि रूपों पर प्रकाश डाला गया है। __ यशस्तिलक में विवाह के दो प्रकारों का उल्लेख है। प्राचीन राजे-महाराजे तथा बहुत बड़े लोगों में स्वयंवर की प्रथा थी। स्वयंवर के आयोजन की एक विशेष विधि थी। माता-पिता द्वारा जो विवाह आयोजित होते थे, उनमें भी अनेक बातों का ध्यान रखा जाता था। सोमदेव ने बारह वर्ष की कन्या तथा सोलह वर्ष के युवक को विवाह योग्य बताया है। बाल विवाह की परम्परा स्मृतिकाल से चली पायी थी। स्मृति ग्रन्थों में भरजस्वला कन्या के ग्रहण का उल्लेख है। अलबरूनी ने भी लिखा है कि भारतवर्ष में बाल विवाह की प्रथा थी। इस परिच्छेद में इस सम्पूर्ण सामग्री का विवेचन किया गया है।
परिच्छेद पाँच में यशस्तिलक में आयी खान-पान विषयक सामग्री का विवेचन है। सोमदेव की इस सामग्री की त्रिविध उपयोगिता है। एक तो इससे खाद्य और पेय वस्तुओं की लम्बी सूची प्राप्त होती है, दूसरे दशमी शती में भारतीय परिवारों, विशेषकर दक्षिण भारत के परिवारों की खान-पान व्यवस्था का पता चलता है । तीसरे ऋतुओं के अनुसार मंतुलित और स्वास्थ्यकर भोजन की व्यवस्थित जानकारी प्राप्त होती है। पाक विद्या के विषय में भी सोमदेव ने पर्याप्त जानकारी दी है। शुद्ध और संसर्ग भेद से त्रेसठ प्रकार के व्यंजन बनाये
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