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यशस्तिलक को शब्द- सम्पत्ति
रेरिहाण: ( रेरिहाणनिवविहार हव ६०५/७ ) : महिष, भैंसा रोदः (२०/५ ) : आकाश लगुडम् (२१६।७ उत्त० ) : लकुटदण्ड,
लट्ठ
लक्ष्मण (२०६५ उत्त ० ) : लक्ष्मण ( राम का छोटा भाई), सारस पक्षी लतान्तम् (९७।१ ) : फूल लटह: (११३।७ ) : सुन्दर लहगति ( १५०४ ) : ललित गमन लयनम् (१३४ | १ ) : श्रुतसागर ने इसका अर्थ शिलोत्कीर्ण गृह किया है । यहाँ गुफा से तात्पर्य है । लम्बस्तनीकम् (१९७।२ उत्त० ) : चिचावृक्ष
लक्ष्मी (१९५१ उत्त० ) : लक्ष्मी, डशृंगी नामक औषध
भर
लंजिका (४१७/५ ) : वेश्या लांगली ( ३।३ उत्त० ) : जल पिप्पली लालाटिकः (१६४/५ ) : नौकर बुलायः (५२३।६) : महिष, भैंसा लूता (२६३।१०) : मकड़ी लेखपत्रम् (१९७।२ उत्त० ) : ताड़पत्र लेसिकः (४५।३ उत्त० ) : लेसिक नामक गज-परिचारक, जो हाथियों को लगाने आदि का काम करता था । बाण ने हर्षचरित में लेसिक परिचारकों का उल्लेख किया है ।
तेल
लोम (प्रकामायाम लोम चूड़ेर्गणैः, ४६६।५) : केश, बाल लोमचूड़ : ( ४६६।५ ) : मुर्गा लोहलः (विविधवाद्योद्धुरध्वान लोहले,
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२४७६) : व्याप्त व्यजनः (२०५६) : पंखा व्याघ्री (२००१७ उत्त० ) : लता विशेष व्याली (५१ । ३ उत्त० ) : दुष्ट हथिनी व्योमकेशः (२१।२) शिव
वत्सलम् (४०२।६, ५०८/८ ) : भोजन वर्धमानम् (१९६ । २ उत्त० ) : एरंड वृक्ष
वनीपकः ( १८/२ ) : स्तुतिपाठक वनजम् (२४३०४ ) : कमल, पानी का एक नाम 'वन' भी है। वन में उत्पन्न होने के कारण इसे 'वनेज' कहा है।
वतः (४३1३ ) : पिता, बीज डालने वाला । संभवतया 'बाप' इसी से बना है ।
वर्वरकः (१८४।५ उत्त० (०) : शिशु वर्षधरः (१३३।३ ) : नपुंसक वराहः (१९८७ उत्त० ) : सुअर वराहवेरी (१८८३ उत्त० ) कुत्ता वल्लकः (उच्छूनोद्वेल्लित वल्लकरालक, ४०५/५ ) : कच्चा
वल्लवी (१९८५) : गोपी वल्ली (२००७ उत्त० ) : लता वल्लूरम् (स्ववपुर्टून वल्लूरम्, ४९/५ ) : मांस बलालः (बलं वलालः, २१९।२) : वायु, पृ० १९९।७ उत्त० में भी इसका प्रयोग हुआ है । वलीकम् (तुहिनतरुविनिर्मितवलीकान्त - रमुक्त, २९ २ उत्त० ): श्रुतसागर इसका अर्थ पट्टिका किया है। संभव
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